Tulsi Vivah : हर वर्ष क्यों होती है तुलसी विवाह, जाने क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा
Tulsi Vivah : हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) की जाती है। इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है। तुलसी विवाह करवाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते है कि हर साल तुलसी (Tulsi Vivah) विवाह क्यों कराया जाता है उसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है। अगर नहीं तो चलिए फिर जानते है ऐसा क्यों होता है…
Tulsi Vivah : इसलिए कराया जाता है तुलसी विवाह
देवी देवताओं ने कार्तिक पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के शालिग्राम स्वरूप का विवाह सती तुलसी के संग करवाया था। उस दिन को याद करते हुए हर साल देवी तुलसी का विवाह (Tulsi Vivah) भगवान शालिग्राम के संग करवाने की परंपरा चली आ रही है। यह एक तरह से विवाह के वर्षगांठ का उत्सव है। कहते हैं जो लोग तुलसी संग भगवान विष्णु का विवाह करवाते हैं उनका वैवाहिक जीवन सुखद होता है।
Tulsi Vivah : तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
- तुलसी विवाह 2022: शनिवार 5 नवंबर 2022
- कार्तिक द्वादशी तिथि शुरू: 5 नवंबर 2022 शाम 6:08 बजे
- द्वादशी तिथि समाप्त: 6 नवंबर 2022 शाम 5:06 बजे
- तुलसी विवाह पारण मुहूर्त: 6 नवंबर को दोपहर 1:09:56 से 03:18:49 तक
Tulsi Vivah : जाने तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, तुलसी का पौधा “वृंदा” नाम की एक महिला थी जो असुर जालंधर की पत्नी और भगवान विष्णु की परम भक्त थी। उसकी भक्ति ने उसके पति को अजेय बना दिया, उसे देवता भी नहीं हरा सके। एक बार जालंधर ने देवताओं को युद्ध के लिए ललकारा और दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। भगवान विष्णु के वरदान के कारण उसे कोई हरा नहीं पा रहा था इसलिए देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। युद्ध के लिए निकलते समय जालंधर ने अपनी जीत के लिए वृंदा को पूजा करने के लिए कहा। वृंदा अपने पति की जीत के लिए प्रार्थना कर रही थी कि तभी भगवान विष्णु जालंधर के रूप लेकर वृंदा के सामने चले गए। वृंदा ने अपनी प्रार्थना बंद कर दी और जालंधर/विष्णु के पैर छूने चली गई। इससे असली जालंधर की शक्तियां छीन ली गईं और फिर भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।
वृंदा ने दिया भगवान विष्णु को श्राप
जब वृंदा ने को इस बारे में पता चला तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह शालिग्राम बन जाएंगे और अपनी पत्नी लक्ष्मी से अलग हो जाएंगे। इसके बाद भगवान विष्णु शालिग्राम में बदल गए और सीता से उनके राम अवतार में अलग हो गए। उसके बाद वृंदा समुद्र में समा गई। देवताओं ने उसे तुलसी के पौधे में बदल दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने उससे वादा किया था कि वह अगले जन्म में उससे शादी करेंगे इसलिए उन्होंने शालिग्राम रूप में तुलसी से विवाह किया। तभी से इस दिन को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जा रहा है।
तुलसी विवाह करने की पूजा विधि
आपको हर एक हिंदू घर के आंगन में आमतौर पर तुलसी का पौधा लगा हुआ मिलेगा, अब तुलसी विवाह के लिए आप घर के आंगन के चारों ओर एक मंडप बनाएं। अब भगवान शालीग्राम को स्नान कराएं और माता तुलसी को भी गंगा जल का छिड़काव कर स्नान कराएं। इसके बाद दुल्हन तुलसी को साड़ी और दूल्हे शालिग्राम को धोती पहनाएं और अब इस जोड़े का सूती धागे से गठबंधन करें। इसके बाद इनकी पूजा कर आरती उतारें। बता दें कि भगवान विष्णु / शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह पारंपरिक हिंदू विवाह जैसा दिखता है। तुलसी विवाह के दिन शाम तक यानि समारोह शुरू होने तक महिलाएं उपवास रखती है। ऐसा माना जाता है कि वृंदा की आत्मा रात में पौधे में निवास करती है और सुबह निकल जाती है।
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