Virtual Autopsy : क्या होती है वर्चुअल ऑटोप्सी, क्यों इस नई टेक्नॅालजी से किया गया Raju Srivastava का पोस्टमार्टम
Virtual Autopsy of Raju Srivastava : पूरी दुनिया को अपनी कॅामेडी से हंसाने वाले फेमस कॅामेडिन राजू श्रीवास्व (Comedian Raju Srivastava) ने 42 दिन जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ने के बाद 21 सितंबर को हम सभी को अलिवदा कह गए। लंबे समय से बीमार चल रहें राजू श्रीवास्तव का 58 साल की उम्र में दिल्ली के AIIMS हॅास्पिटल में निधन हो गया। सबको कभी अपनी कॅामेडी से हंसाने वाला ये सितारा रुला गया। उनके जाने के बाद उनके परिजनों के साथ उन्हें चाहने वाले देश के सभी लोग में मायूसी छाई हुई है, सभी गहरे शोक में है। राजू श्रीवास्तव का अंतिम संस्कार गुरूवार की सुबह 9.30 बजे दिल्ली में होगा। वहीं उनकी पोस्टमॉर्टम को लेकर एक बड़ी बात सामने आई है। जिसमें पता चला है कि कॅामेडियन के शव का पोस्टमार्टम वर्चुअल ऑटोप्सी (Virtual Autopsy) के जरिए किया गया। बहुत से लोग ऐसे है जिन्हें शायद न पता हो कि ये Virtual Autopsy क्या होती, कैसे की जाती है। चलिए आज हम आपको बताएंगे कि ये वर्चुअल ऑटोप्सी क्या है आखिर क्यों कॅामेडिन की डेड बॅाडी का वर्चुअल वर्चुअल ऑटोप्सी करना पड़ा।
क्या है Virtual Autopsy
एम्स के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ सुधीर गुप्ता ने बताया कि Virtual Autopsy में सबसे पहले मृतक की डेड बॅाडी को एक रैम्प पर लिटा दिया जाता है। फिर इसके बाद उसके पूरे शरीर का सिटी स्कैन होता है। वहीं स्कैन के दौरान शरीर का वो हिस्सा भी दिख जाता है जो पुराने पोस्टमॉर्टम के तकनीक में नहीं दिख पाता था। इस पूरे प्रोसेस को लाइव देखने की भी सुविधा है।
कराया गया सर्वे
डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने बताया कि इस टेक्नॅालजी को लाने से पहले एम्स हॅास्पिटल ने इसका सर्वे कराया था। वहीं इस सर्वे में 99 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह नहीं चाहते कि मौत के बाद उनके परिजन का पोस्टमार्टम हो। डॉक्टर गुप्ता ने आगे बताया कि इस मॉर्डन मॉर्चरी की स्टडी करने के लिए एम्स से डाक्टरों की टीम ने अमेरिका और यूरोप का दौरा किया, जिसके बाद वहां से अध्यन कर जर्मनी और अन्य दूसरे देशों की तकनीक की भी मदद ली गई। वहीं इस पूरे वर्चुअल मॉर्चरी को बनाने में लगभग 10 करोड़ की लागत का खर्च हुआ।
पुराने टेक्नॅालजी से कितना अलग
डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने बताया कि पहले और अब की पोस्टमार्टम तकनीक में काफी फर्क है। पहले चिन से लेकर नीचे तक पूरे शरीर को चीरा जाता था। उसके बाद स्टडी करके उसे अच्छे तरीके से सिलाई की जाती थी। इस पूरे प्रोसेस में काफी समय लगता था।
Virtual Autopsy के प्रोसेस में लगता है कम समय
बता दें कि, AIIMS नई दिल्ली में दक्षिण एशिया का पहला वर्चुअल फारेंसिक लैब खुला है। एम्स के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ सुधीर गुप्ता ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि राजू श्रीवास्तव का पोस्टमार्टम Virtual Autopsy नाम की नई तकनीक से हुआ है। इस पोस्टमार्टम के पूरे प्रोसेस 15 से 20 मिनट का समय लगता है, जिसके बाद मृतक के शव को उनके परिजनों को दे दिया जाता है।
इसलिए पड़ी नई टेक्नॅालजी की जरुरत
आमतौर पर किसी कि मृत्यु होने के बाद उसके परिजन या सगे-संबंधी मृतक के शव का पोस्टमार्टम नहीं करवाना चाहते। क्योंकि इसमें शव की चीर-फाड़ होती है इस कारण लोग पोस्टमार्टम कराने से बचना चाहते है। अब आपको बता दें कि राजू श्रीवास्तव के पोस्टमार्टम में उनकी डेड बॅाडी से कोई चीर-फाड़ नहीं की गई है और यही वजह है कि इस नई टेक्नॅालजी के जरिए उनका पोस्टमार्टम हुआ है।
इसलिए हुआ Virtual Post Mortem
डॅा सुधीर गुप्ता ने बताया कि ‘वर्चुअल ऑटोप्सी’ हाई-टेक डिजिटल एक्स-रे और सीटी स्कैन की सहायता से होती है और इसमें पहले की पोस्टमार्टम की तुलना में कम समय लगता है। वहीं उन्होंने राजू श्रीवास्तव के इस नई टेक्नीक से पोस्टमार्टम करने को लेकर कहा कि ‘‘शुरुआत में जब उन्हें एम्स लाया गया था, तो वह अपने होश में नहीं थे। पिछले काफी दिनों से एक बार भी वो पूरी तरीके से होश में नहीं आए थे, उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था और ‘ट्रेडमिल’ पर दौड़ने के दौरान गिरने की बात साफ नहीं हो पा रही थी, इसिलिए कॅामेडियन का पोस्टमार्टम करना पड़ा।