Cheetah In India : भारत में 70 साल बाद लाए गए नामीबिया से चीते, जानिए क्या है खास
Cheetah Return : इस समय पूरे देश में चीते चर्चा का विषय बने हुए हैं, क्योंकि सात दशक बाद आज विशेष मालवाहक विमान से नामीबिया (Namibia Cheetah) से आठ चीते भारत लाए गए है। बता दें कि, ये चीते कभी साल 1952 में ये विलुप्त हो गए थे, करीब 8 हजार किलोमीटर की यात्रा करके ये मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) पहुंचे हैं। इनमें तीन नर और पांच मादा चीते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अपने जन्मदिन के अवसर पर सुबह 10 बजकर 45 मिनट पर इनमें से तीन चीतों (Cheetah Return) को इनके लिए बनाए गए विशेष बाड़ों में छोड़ा।
Cheetah Return: चीतों ने की 11 घंटे की यात्रा
कुनो राष्ट्रीय उद्यान प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित है जो ग्वालियर से लगभग 165 किलोमीटर दूर स्थित है। भारत में चीतों को विलुप्त घोषित किए जाने के सात दशक बाद चीतों को देश में फिर से बसाने की परियोजना के तहत नामीबिया से आठ चीतों को लेकर विशेष मालवाहक विमान शनिवार सुबह यहां हवाई अड्डे पर उतरा। मालवाहक बोइंग विमान में शुक्रवार रात को नामीबिया से उड़ान भरी थी और लगभग 10 घंटे की लगातार यात्रा के दौरान चीतों को लकड़ी के बने विशेष पिंजरों में यहां लाया गया।
अब करीब 70 साल बाद एक बार फिर भारत में चीते पाले जाएंगे। इस बार हालांकि मकसद अलग है। भारत में जैव विविधता को मजबूत बनाने के इरादे से ये चीते लाए गए हैं। मध्य प्रदेश के कूनो नैशनल पार्क (Kuno National Park) में इनके लिए एक हिस्सा रिजर्व किया गया है। वहां इन्हें 30 दिनों तक क्वॉरंटीन किया जाएगा।
जानिए Cheetah का इतिहास
लेकिन इन चीतों के लिए भारत जितना अजनबी होगा, यहां की आबोहवा के लिए भी ये उतने ही अजनबी होंगे। ये अफ्रीकी चीते हैं। भारत ने तो एशियाई चीतों को दौड़ते, शिकार करते, शिकार होते और खत्म होते देखा है। बताते हैं कि मुगल बादशाह अकबर के पास करीब 9 हजार चीते थे। अकबर के दरबारी अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह इन्हें शिकार की ट्रेनिंग दिलवाता था और इस काम में 3-4 महीने लग जाया करते थे। अपने वालिद का यह शौक जहांगीर को भी विरासत में मिला। बताते हैं कि दिल्ली के आसपास के इलाकों में काले हिरण पकड़ने और उनके शिकार में जहांगीर चीतों की मदद लिया करता था।
लेकिन शिकार के लिए कैद किए जाने से चीतों (Cheetah) की स्वाभाविक जिंदगी पर असर पड़ने लगा। उनकी प्रजनन दर बहुत अधिक घट गई। और अंग्रेजों के राज में इंसान तो क्या, चीतों का भी जीना मुहाल हो गया। भारत में पैर जमा लेने के बाद अंग्रेजों ने कॉफी, चाय और नील की खेती कराने के लिए जंगलों का तेजी से सफाया शुरू किया। उन्होंने चीतों के शिकार पर इनाम देना भी शुरू कर दिया। कुलमिलाकर बदलते वक्त ने ऐसा कहर ढाया कि भारत में चीतों का नामोनिशान मिट गया। बताया जाता है कि 1947 में मध्य प्रदेश में सरगुजा रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने तीन चीतों का शिकार किया था। वही भारत के जंगलों में आखिरी तीन चीते बताए जाते हैं।
इससे पहले भी चीते लाने का हो चुका है प्रयास
अब नामीबिया (Namibia) से जो चीते भारत लाए गए हैं, वे एशियाई चीते तो नहीं, लेकिन उनके दूर के रिश्तेदार कहे जा सकते हैं। इससे पहले भी अफ्रीकी देशों से चीते लाने के सरकारी प्रयास किए गए थे। आंध्र प्रदेश के राज्य वन्य जीव बोर्ड ने 1955 में ही इसके लिए एक पॉलिसी बनाने का सुझाव दिया था। उसने राज्य दो जिलों में चीतों (Cheetah) को बसाने की बात कही थी। 1970 के दशक में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ईरान से कुछ चीते भेजने का अनुरोध किया था। आज तो ईरान में बमुश्किल एक दर्जन एशियाई चीते बचे होने की जानकारी है, लेकिन उन दिनों करीब 300 चीते वहां थे। लेकिन इससे पहले कि बात आगे बढ़ती, ईरान में क्रांति हो गई। शाह का तख्तापलट हो गया और बात धरी की धरी रह गई।
फिर 2009 में भी कदम उठाए गए। पर्यावरण मंत्रालय ने वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर इस बारे में संभावना टटोली। चीतों को भारत में बसाने के लिए कई जगहें खंगाली गईं और पाया गया कि कूनो-पालपुर नेशनल पार्क सबसे मुफीद रहेगा।
एक महीने बाद मादा चीतों को रिजर्व एरिया में छोड़ा जाएगा
अब योजना यह है कि Namibia से आने वाले नर और मादा चीतों (Cheetah) को कूनो नेशनल पार्क में कुछ दिनों तक आसपास के बाड़ों में रखा जाएगा ताकि उनकी अच्छी जान-पहचान हो जाए। अफ्रीकी चीतों को भारत में खाने-पीने की दिक्कत न होने पाए, इसलिए उनके बाड़ों में जिंदा जानवर रखे जाएंगे। इससे वे भारत में मिलने वाले जीव-जंतुओं से भी परिचित हो जाएंगे। इसके बाद उन्हें नेशनल पार्क के बड़े रिजर्व इलाके में छोड़ा जाएगा। शुरू में नर चीते छोड़े जाएंगे। करीब एक महीने बाद मादा चीतों को रिजर्व एरिया में छोड़ा जाएगा।
सरकारी योजना में यह उम्मीद जताई गई है कि करीब 15 वर्षों में कूनो पार्क में चीतों की आबादी 20-21 तक पहुंच जाएगी। कूनो का जो क्षेत्रफल है, उसके हिसाब से वहां इतने चीतों के लिए ही जगह होगी। इस बीच, मध्य प्रदेश और राजस्थान में दूसरी जगहों पर चीतों के लिए अभयारण्य बनाने की योजना है। अगले पांच से दस वर्षों तक अफ्रीका से और चीते भी लाए जाते रहेंगे।
Cheetah: भारत में बसने की चुनौती
- भारत आने वाले चीतों के सामने कई चुनौतियां होंगी, लेकिन तेंदुआ एक बड़ी चुनौती है। तेंदुए, जिन्हें अंग्रेजी में लेपर्ड और कुछ जगहों पर गुलदार भी कहा जाता है, विशेषकर कूनो नेशनल पार्क में चीतों के बच्चों को मारकर उनकी आबादी सीमित कर सकते हैं।
- भारत आने वाले चीतों को शेरों, तेंदुओं, लकड़बग्घों और जंगली कुत्तों का सामना करना पड़ेगा। कूनो में उनका सामना स्लोथ भालू, धारीदार लकड़बग्घे और भेड़ियों से होगा. भारत में उनके शिकार मुख्य रूप से हिरन प्रजाति के जानवर जैसे सांभर और बारहसिंघा आदि होंगे।
- एक ज़माने में दुनिया के कई हिस्सों में पाए जाने वाले चीतों की बड़ी तादाद और उसके धीमे-धीमे कम होने के प्रमाण इतिहास में भी दर्ज हैं।
- मशहूर इतिहासकार थियरे बुकवेट अपने शोध “हनटिंग विद चीतास” में लिखते हैं, “चीते के शिकार के वाक़ये और उसकी मौजूदगी के प्रमाण मध्यकालीन यूरोप के कहीं पहले से मिलते हैं. प्राचीन मिस्र के अभिलेखों से पता चलता है कि अफ़्रीका के दक्षिणी हिस्से से मंगाए गए चीतों को पालतू जानवर की तरह रखा जाता था। उधर छठी सदी के चीन में तांग राजवंश का शासन था जहां चीते शाही आन-बान से जोड़ कर देखे जाते थे।
चीते के बारे में जानिए ये दिलचस्प जानकारियाँ
- बाघ, शेर या तेंदुए की तरह चीते दहाड़ते नहीं हैं, उनके गले में वो हड्डी नहीं होती जिससे ऐसी आवाज़ निकल सके, वे बिल्लियों की तरह धीमी आवाज़ निकालते हैं और कई बार चिड़ियों की तरह बोलते हैं।
- चीता (Cheetah) दुनिया का सबसे तेज़ दौड़ने वाला जीव है लेकिन वह बहुत लंबी दूरी तक तेज़ गति से नहीं दौड़ सकता, अमूमन ये दूरी 300 मीटर से अधिक नहीं होती।
- चीते दौड़ने में सबसे भले तेज़ हों लेकिन कैट प्रजाति के बाकी जीवों की तरह वे काफ़ी समय सुस्ताते हुए बिताते हैं।
- गति पकड़ने के मामले में चीते स्पोर्ट्स कार से तेज़ होते हैं, शून्य से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ने में उन्हें तीन सेकेंड लगते हैं.
- चीता का नाम हिंदी के शब्द चित्ती से बना है क्योंकि इसके शरीर के चित्तीदार निशान इसकी पहचान होते हैं।
- चीता कैट प्रजाति के अन्य जीवों से इस मामले में अलग है कि वह रात में शिकार नहीं करता है।
- चीते की आँखों के नीचे जो काली धारियाँ आँसुओं की तरह दिखती है वह दरअसल सूरज की तेज़ रोशनी को रिफ़लेक्ट करती है जिससे वे तेज़ धूप में भी साफ़ देख सकते हैं।
- मुग़लों को चीते पालने का शौक़ था, वे अपने साथ चीतों को शिकार पर ले जाते थे जो आगे-आगे चलते थे हिरणों का शिकार करते थे।
- भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित कर दिया गया था, अब एक बार फिर उन्हें दोबारा भारत में बसाने की कोशिश हो रही है।
- भारत में जो चीते लाए गए हैं वे खुले मैदानों में शिकार करने के आदी हैं, उनके मध्य प्रदेश के जंगलों में शिकार करना कितना आसान होगा, यह अभी देखना बाक़ी है।
हमसे जुड़े तथा अपडेट रहने के लिए आप हमें Facebook Instagram Twitter Sharechat Koo App YouTube Telegram पर फॉलो व सब्सक्राइब करें