Holi 2021: भद्राकाल में नहीं किया जायेगा होलिका दहन, जानें भद्रकाल को क्यों मानते हैं अशुभ
भद्राकाल | होली का त्यौहार जिसे प्यार का त्यौहार भी माना जाता हैं इस दिन सब एक-दूसरे को रंग लगा कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं होली के दिन हर कोई अपने गिले शिकवे भूल कर एक-दूसरों को गले लगाते हैं। होली का त्यौहार प्रत्येक वर्ष मनाया जाता हैं, होली का त्यौहार दो दिन मनाया जाता हैं जिसमें पहले दिन होलिका दहन किया जाता हैं तो दूसरे दिन एक-दूसरे को रंग लगाए जाते हैं। इस बार होलिका दहन (Holi 2021) के दिन भद्राकाल लग रही हैं, क्या आप जानते हैं कि भद्राकाल में कभी होलिका दहन या कोई शुभ काम क्यों नहीं किया जाता, आइये जानते हैं।
Holi 2021: कब लग रहा भद्राकाल
हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार कोई भी शुभ कार्य भद्राकाल में नहीं किया जाता हैं भद्राकाल होलिका दहन के दिन लग रही हैं लेकिन ऐसा नहीं हैं कि इस दिन होलिका दहन नहीं होगा क्योंकि होलिका दहन के दिन भद्राकाल का समय दोपहर 1:54 तक ही हैं और होलिका दहन का समय शाम को 6:37 से लेकर 8:56 तक हैं।
क्यों नहीं किया जाता भद्राकाल में होलिका दहन
पुराणों के अनुसार भद्राकाल में होलिका दहन करना पाप करने के समान हैं, ऐसा नहीं हैं भद्राकाल में होलिका दहन करने वाले को अनिष्ट का सामना करना पड़ता हैं बल्कि ऐसा करना उस देश के लिए भी अनिष्ट की परिस्थिति बना देता हैं। इसके अलावा कभी भी कोई भी पंडित या ज्योतिषाचार्य आपको भद्राकाल में किसी भी शुभ कार्य को करने की
सलाह नही देते।
क्यों माना जाता हैं भद्राकाल को अशुभ
पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यदेव और उनकी पत्नी की पुत्री जिनका नाम भद्रा था, वो शनिदेव की बहन थी, भद्रा जन्म से ही भयंकर और कुरूप थी। उनका रंग काला था इसके अलावा वो बहुत गुस्से वाली थी, वो अक्सर शुभ कार्यों में विघ्न पहुचाया करती थी। ये सब देखकर भगवान सूर्यदेव को बहुत चिंता सताने लगी थी और अपनी चिंता लेकर ब्रह्मा जी के पास गए और अपनी व्यथा सुनाई, तब ब्रह्मा जी ने भद्रा के स्वभाव को नियंत्रण में करने के लिए भद्रा को पंचांग के प्रमुख अंग विष्टि करण में आसीन कर दिया।
ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि अब तुम बालव, कौलव आदि करणों के अंत में निवास करो और कोई भी व्यक्त तुम्हारे समय में मंगल कार्य, व्यापार, यात्रा, प्रवेश आदि कार्य करें तो तुम उनके कार्यो में विघ्न करो। अगर कोई तुम्हारा आदर ना करें तो तुम उसके कार्यो को बिगाड़ देना, ब्रह्मा जी से ये आदेश पा कर भद्रा तीनों लोकों में घूमने लगी और जब भी वो मृत्युलोक में होती हैं तो वो हर तरह के शुभ कार्यों में बाधा डालने वाली या नाश करने वाली मानी जाती हैं।
क्यों किया जाता हैं होलिका दहन
होलिका दहन के पीछे बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं पर सबसे ज्यादा प्रमुख होलिका और प्रहलाद की कथा हैं, प्रहलाद जो राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र था और वो हमेशा भगवान विष्णु की पूजा करते थे जो उनके पिता हिरणकश्यप को बिल्कुल पसन्द नहीं था इसीलिए उसने अपने बेटे को कई बार मरवाने के प्रयास किये परंतु हर बार उसे असफलता ही मिली।
अंत मे हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया और उसे प्रहलाद को अपनी गोद मे लेकर अग्नि में बैठने को कहा, क्योंकि होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान था, जैसे ही होलिका प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठी तो प्रहलाद की जगह होलिका ही अग्नि में भस्म हो गई। उसी दिन से होलिका दहन का पर्व मनाया जाता हैं होलिका दहन में लोग अपने पापों को भी जला देते हैं।