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Rangbhari Ekadashi: काशी में रंगभरी एकादशी और होली की परंपरा, जानें क्यों है ये खास?

Rangbhari Ekadashi: हिन्दू धर्म में होली का त्योहार एक ऐसा पर्व है जिसे सभी उम्र के लोग धूमधाम से मनाते हैं। यह त्योहार हर साल फाल्गुन माह में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) में होली का प्रारंभ रंगभरी एकादशी से होता है। यह पर्व केवल काशीवासियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर भक्त के लिए विशेष महत्व रखता है। काशी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से होती है, जो इस साल 20 मार्च 2024, बुधवार को मनाई जाएगी। तो चलिए, जानते हैं रंगभरी एकादशी और काशी की होली की खास परंपरा के बारे में।

Rangbhari Ekadashi: रंगभरी एकादशी और होली की शुरुआत

रंगभरी एकादशी, जिसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन काशी में विशेष धार्मिक अनुष्ठान होते हैं और होली के त्योहार की शुरुआत होती है। रंगभरी एकादशी काशी में एक महत्वपूर्ण पर्व है, क्योंकि यह दिन बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव ने माता गौरी के साथ विवाह किया। विवाह के बाद, भगवान शिव ने पहली बार माता गौरी को काशी लाया। इस खास मौके पर, भगवान शिव ने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशी मनाई। तभी से काशी में रंगभरी एकादशी के दिन होली मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह पर्व सुख, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। काशी में होली का पर्व छह दिन तक मनाया जाता है। यह पर्व रंगभरी एकादशी से शुरू होकर होली के दिन समाप्त होता है।

Rangbhari Ekadashi 2025

काशी में रंगभरी एकादशी का महत्व

रंगभरी एकादशी का काशी में विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव और माता गौरी के विवाह की खुशी में रंग-गुलाल उड़ाए जाते हैं। काशी में यह दिन एक तरह से शिव और पार्वती के वैवाहिक जीवन का उत्सव होता है। भक्त इस दिन भगवान शिव और माता गौरी की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

काशी में जब होली की शुरुआत होती है, तो भक्त एक विशेष पूजा करते हैं जिसमें शिव और पार्वती के वैवाहिक जीवन के महत्व को दर्शाया जाता है। यह परंपरा काशी के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। इस दिन काशी में विशेष रूप से बाबा विश्वनाथ का श्रृंगार किया जाता है, और उन्हें दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। इसके बाद, गाजे-बाजे के साथ बाबा विश्वनाथ का गौना कराते हुए माता पार्वती को ससुराल भेजा जाता है। इसके साथ ही काशी में रंगोत्सव की शुरुआत होती है, जो अगले छह दिनों तक चलता है।

Rangbhari Ekadashi: पूजा विधि

रंगभरी एकादशी के दिन काशी में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर भक्त स्नान करते हैं और फिर पूजा के स्थान पर भगवान शिव और माता गौरी की मूर्तियों को स्थापित करते हैं। पूजा के दौरान शिव और पार्वती जी को अबीर, गुलाल, पुष्प, गंध, अक्षत, धूप, बेलपत्र आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद, उन्हें श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है और विशेष रूप से रंग-गुलाल अर्पित करके माता गौरी का पूजन किया जाता है। पूजा के अंत में एक शुद्ध घी का दीपक जलाकर, कपूर के साथ आरती की जाती है। इस दिन का महत्व इस बात में भी है कि इसे शुद्धता, प्रेम और परंपरा के रूप में मनाया जाता है।

काशी में होली की विशेष परंपराएं

काशी में होली का उत्सव अन्य स्थानों से कहीं अधिक पारंपरिक और धार्मिक होता है। रंगभरी एकादशी से लेकर होली तक काशी में विशेष पूजा-अर्चना होती है, और भक्त रंग-गुलाल उड़ाकर भगवान शिव और माता गौरी की पूजा करते हैं। इस दौरान काशी की गलियों में हर तरफ उत्साह और उमंग का माहौल होता है।

रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता गौरी के विवाह के बाद की खुशी में काशीवासियों द्वारा रंग और अबीर उड़ाया जाता है, और पूरी काशी ‘हर हर महादेव’ के उद्घोष से गूंज उठती है। यह परंपरा काशी के सामाजिक और धार्मिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।

Rangbhari Ekadashi: धार्मिक संदेश

रंगभरी एकादशी न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह हमें जीवन के महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करके हम अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करते हैं। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में खुशहाली और संतुष्टि के लिए हमें अपने कर्मों और आस्थाओं को सही दिशा में रखना चाहिए।

काशी की यह विशेष परंपरा हमें यह भी याद दिलाती है कि धार्मिक आस्थाओं का महत्व केवल पूजा तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि हमें उन्हें अपने जीवन के प्रत्येक पहलू में उतारने की आवश्यकता है।

रंगभरी एकादशी काशी में एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है। यह दिन काशीवासियों के लिए खुशी और उल्लास का प्रतीक है, क्योंकि इसी दिन से होली का पर्व शुरू होता है। काशी में यह पर्व धार्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इस दिन की पूजा और आयोजन हमें जीवन में खुशियों, समृद्धि और आस्था को बनाए रखने का संदेश देते हैं।

Chandan Singh

Chandan Singh is a Well Experienced Hindi Content Writer working for more than 4 years in this field. Completed his Master's from Banaras Hindu University in Journalism. Animals Nature Lover.