Vinayak Chaturthi 2021: आज बुधवार को बना है विनायक चतुर्थी का अतिउत्तम योग, जानें व्रत कथा और पूजा विधि
धर्म। हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार सर्व विघ्न विनाशक अनंत विभूषित भगवान श्री गणेश की महिमा अनंत मानी गई है। प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में श्री गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी की पूजा अर्चना करने से सारी तरह के विघ्न खत्म हो जाते हैं और जीवन में सुख समृद्धि और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गणेश विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2021) तिथि भगवान गणेश को अति प्रिय है। प्रत्येक मास के दोनों पक्ष में चतुर्थी तिथि के दिन व्रत उपवास रखकर भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करने से विशेष फल प्राप्त होता है। चंद्र मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि वरद विनायक की गणेश चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2021) के नाम से जबकि, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि सकट गणेश चतुर्थी के नाम से जानी जाती है।
इस बार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की मध्यान्ह तिथि बुधवार 17 मार्च को पड़ रही है। चतुर्थी तिथि मंगलवार 16 मार्च को रात्रि 8 बजकर 30 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 17 मार्च की रात्रि 11 बज कर 29 मिनट तक रहेगी, जिसके फलस्वरूप गणेश चतुर्थी का व्रत 17 मार्च को रखा जाएगा। बुधवार भगवान गणेश का दिन माना गया है और इस दिन चतुर्थी तिथि का संयोग गणेश जी की पूजा अर्चना के लिए विशेष शुभ फलदाई मानी गयी है।
Vinayak Chaturthi 2021: मनोकामना पूर्ति के लिए करें ये पाठ
गणेश जी की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए उनकी महिमा में यश गान के रुप में श्री गणेश स्तुति, संकटनाशक गणेश स्त्रोत, श्री गणेश अथर्वशीर्ष, श्री गणेश चालीसा एवं गणेश जी का पाठ अवश्य करना चाहिए। गणेश जी को संबंधित मंत्र का जाप करने से आप सर्वाधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
इस समय पाठ करने से मिलता है विशेष लाभ
पौराणिक मान्यता है कि श्री गणेश अथर्वशीर्ष का प्रातकाल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है। यदि विधि विधान पूर्वक एक हजार बार पाठ किया जाए तो आपकी सभी मुराद पूरी होती है। गणेश चतुर्थी के व्रत से सुख सौभाग्य में वृद्धि के साथ ही सभी मनोकामनाएं पूरे हो जाते हैं।
विनायक चतुर्थी कथा
आज हम आपको चतुर्थी की क्या कथा है वो बतलाने जा रहे हैं। विनायक चतुर्थी के पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती के मन में एक ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है। ऐसे ही वो अपने मन से एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भरती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। लेकिन जाने से पहले माता अपने पुत्र को आदेश देती हैं कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को कंदरा में प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। और कुछ समय बीत जाने के पश्चात भगवान शिव वहां पहुंचते हैं। भगवान शिव जैसे ही कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वह बालक उन्हें रोक देता है। महादेव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वह उनकी एक नहीं सुनता है। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं।
ऐसे करें पूजा
विनायक चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। फिर मंदिर में धूप-दीप प्रज्जवलित करें। इसके बाद बप्पा को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर गणेशजी को साफ वस्त्र पहनाएं। इसके बाद सिंदूर से गणेशजी का तिलक करें। फिर उन्हें दुर्वा अर्पित करें। फिर गणेश जी को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। इसके बाद गणेश चालीसा पढ़कर आरती कर लें।