Narak Chaturdashi : नरक चतुर्दशी के दिन इन जगहों पर मनाते हैं ‘भूत उत्सव’, लगता है भूतों का मेला
Narak Chaturdashi : पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम से दिवाली का पर्व मनाया जाता है। वहीं इस त्योहार के ठीक एक दिन पहले नरक चतुर्दशी (Naraka Chaturdashi) का पर्व मनाने की परंपरा है, जिसे काली चौदस, नरक चौदस, रूप चौदस, छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। दीवाली की तरह ये पर्व भी हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस साल नरक चतुर्दशी 23 अक्टूबर को मनाई जाएगी। वैसे तो मान्यता अनुसार इस दिन यमदेव की पूजा करने का विधान है, जिससे अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में कई ऐसी जगहें है जहां Narak Chaturdashi को लोग भूत उत्सव या भूत चतुर्दशी के रूप में मनाते है। इतना ही नहीं इन जगहों पर भूतों का मेला लगता है। शायद बहुत कम ही लोग होंगे जिन्हें इस बात की जानकारी होगी, तो चलिए आपको आज इस बारे में विस्तार से बताते है।
Narak Chaturdashi : नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी के दिन लोग यम देवता की पूजा करते है और उनके नाम से शाम को हर घर के बार एक दीपक निकालने की परंपरा है। जिसे हम यम का दीपक कहते है। कहा जाता है कि इस दीपक को निकालने से अकाल मृत्यु का योग टल जाता है। साथ ही सभी पापों का नाश होता है। वहीं इसके अलावा इस दिन अघोरी तांत्रिक क्रियाएं कर मां काली से सिद्धि प्राप्त करने का आशीर्वाद मांगते हैं। अलग-अलग जगहों पर इस पर्व का अलग-अलग तरीके से मनाए जाने की परंपरा है। आइए अब जानते है उन जगहों के बारे में जहां नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) को भूत उत्सव के रुप में मनाते है।
Narak Chaturdashi : जाने किन जगहों पर नरक चतुर्दशी पर मनता है भूत उत्सव
अयोध्या
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दीवाली पर्व की शुरुआत अयोध्या से ही हुई थी, इस दिन रावण का वध कर प्रभु श्रीराम दोबारा अयोध्या वापस लौटे थे। इसी खुशी में सभी अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। तब से ही ये परंपरा चली आ रही है। वहीं दीवाली से एक दिन पहले Narak Chaturdashi के दिन अयोध्या के सरयू तट स्थित राम की पैड़ी पर दीप सजाए जाते हैं और शाम के बाद इस स्थान पर तांत्रिक क्रियाओं के लिए अघोरी एकत्रित होते है। माना जाता है कि तंत्र साधना से तांत्रिक यहां भूतों को बुलाते हैं, इसी कारण से इस संपूर्ण क्रिया को भूत उत्सव के रूप में जाना जाता है।
गुजरात
गुजरात में दिवाली का उत्सव अलग तरीके से मनाई जाती है। यहां दीवाली को लोग नए वर्ष के रूप में मनाते है और इस दिन नया कार्य करना शुभ मानते हैं। यहां नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) की रात जलते दीपक की लौ पर किसी अन्य बर्तन को रखकर ढका जाता है और जब यह लौ उस बर्तन पर बार- बार लगती है तो उससे उस बर्तन पर काजल उपड़ आता है। तो इसी काजल को दिवाली के अगले दिन नव वर्ष के आगमन की खुशी में महिलाएं और पुरुष अपनी आंखों में लगाते हैं, जिसे एक शुभ प्रथा के रूप में मानी जाती है।
वहीं गुजरात से आगे समुद्र तट पर स्थित द्वारका नगरी में नरक चतुर्दशी के दिन तांत्रिकों द्वारा इसी विधि से काजल बनाया जाता है, लेकिन इसका प्रयोग वे तांत्रिक क्रियाओं के लिए करते है। ऐसा माना जाता है कि इस काजल से अघोरी भूत पिशाचों को अपने वश में कर उन्हें अपने पास बुलाते हैं। कथित तौर पर समुद्र तट के किनारे नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) पर यह नजारा काफी अद्धभुत होता है। वहां मौजूद लोगों को इस दौरान भूत-पिचाश के होने का अहसास तक हुआ है।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में नरक चौदस को काली चौदस के नाम से जाना जाता है। यहां इस दिन को दिवाली से भी बड़े पर्व के रूप में माना जाता है, क्योंकि इस दिन मां काली की पूजा होती है। इस दिन बंगाल में स्थित दक्षिणेश्वर और कालीघाट मंदिर में दूर-दूर से लोग मां काली की पूजा करने के लिए आते हैं। वहीं जहां एक ओर इस दिन इस मंदिर में सात्विक पूजा की जाती है तो वहीं रात में अघोरी सिद्धि प्राप्ति के लिए मंदिर के आस पास के क्षेत्र में अनुष्ठान करते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन सैकड़ों अघोरियों के एक साथ पूजा को ही भूत उत्सव या भूत चतुर्दशी अनुष्ठान कहा जाता है।
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