Dev Deepawali : काशी की देव दीपावली का महादेव से है सीधा संबंध, जानें कैसे शुरु हुई इसे मनाने की परंपरा, क्या है पौराणिक कथा
Dev Deepawali : इस साल कार्तिक पूर्णिमा का दिन 8 नवंबर, मंगलवार को पड़ रहा है। सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि को भगवान भोले शंकर की नगरी वाराणसी के काशी में देव दीपावली (Dev Deepawali) का महापर्व होता है। दिवाली के ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली का यह पावन पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता स्वर्ग लोक से नीचे पृथ्वी लोक पर आते हैं और गंगा स्नान कर दीपोत्सव का हिस्सा बनते हैं। काशी में देवदीपावली की भव्यता देखने दूर-दराज देश-विदेश से लाखों पर्यटक काशी आते है और इस अद्भुत छटा के साक्षी बनते है। क्या आपको है कि देव दीपावली (Dev Deepawali) का सीधा संबंध भगवान शिव से है। आइए आपको इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बताते है।
भगवान शिव को समर्पित होती है Dev Deepawali
हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि को भोल की नगरी काशी में देव दीपावली (Dev Deepawali) का महापर्व मनाया जाता है। देव दीपावली को कार्तिक पूर्णिमा और त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। काशी में उत्सव की तरह मनाई जाने वाली देव दीपावली मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित होती है। इस दिन सभी 84 गंगा घाट, गली मोहल्ले और शहर दीए की रोशनी में जगमग हो उठते हैं।
वहीं संध्या के समय परंपरागत गंगा आरती होती है और लोग घाटों और सरोवरों के तट को सुंदर दीपों से रोशन करते हैं। इसके अलावा इस दिन लोग अपने घर को दीए और रंगोली से भी सजाते हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, शिव पुत्र कार्त्तिकेय ने अपने पिता की सहायता से तीनों लोकों में आतंक मचाने वाले तारकासुर का अंत किया था। उसका प्रतिशोध लेने के लिए, तारकासुर के तीन पुत्रों ने घोर तपस्या कर सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को प्रसन्न किया और ब्रह्माजी से अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन ब्रह्माजी ने मना कर दिया और उनसे कहा कि इसके बदले कोई ऐसी शर्त रख लें, जो बहुत ज्यादा कठिन हो और उसके पूरा होने पर ही उनकी मृत्यु हो। फिर तीनों ने कहा- आप हमारे लिए तीन पुरियों का निर्माण कर दें। साथ ही उन्होंने वरदान में मांगा कि उनकी मृत्यु तभी हो सकती है जब अभिजीत नक्षत्र में तीनों भाईयों के महल एक साथ, एक साथ स्थान पर आ जाएं। उस समय कोई शांत पुरुष, असंभव रथ और असंभव अस्त्र से उन पर वार करे तभी उनकी मृत्यु हो।
ऐसे शुरु हुई काशी में देव दीपावली मनाने की परंपरा
इस वरदान के कारण त्रिपुरासुर अजेय हो गया था। इन्होंने स्वर्ग से देवताओं को भगा दिया था। इनके अत्याचार से पृथ्वी के प्राणी भयभीत हो रहे थे। ऐसे में सभी देवी-देवताओं ने महादेव को त्रिपुरासुर का वध करने के लिए आग्रह किया। भगवान शिव के लिए एक अद्भुत रथ बना जिसके पहिये सूर्य और चंद्रमा बने, फिर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजीत नक्षत्र में त्रिपुरासुर का अंत कर दिया। देवताओं ने प्रसन्न होकर महादेव को त्रिपुरारी और त्रिपुरांतक नाम दिया। इसके बाद सभी देवता ने अपनी खुशी जाहिर करने के लिए भगवान शिव (Lord Shiva) की नगरी काशी पहुंचकर दीप प्रज्वलित किया। इस तरह शुरू हुई काशी में देव दिवाली (Dev Deepawali) मनाने की परंपरा।
दीपावली और देव दीपावली (Dev Deepawali) में कोई खास अंतर नहीं है। मुख्य दिवाली से पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है, जो भगवान व भगवती की नरकासुर पर विजय का प्रतीक है। देव दिवाली भी महेश्वर की त्रिपुरासुर पर विजय की स्मृति का पर्व है। काशी में इस पर्व को काफी महत्त्व दिया जाता है और भव्यता से इसे मनाया जाता है.
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