जानें, आखिर ऐसे हुई थी भगवान शिव के अत्यंत प्रिय बेलपत्र की उत्पत्ति
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान शिव का पूजन बेलपत्र के बिना अधुरा माना जाता है इसीलिए शिव पूजन में बेल पत्र का अपना एक विशेस महत्व है | कहा जाता है की शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने से महादेव प्रसन्न होते हैं|ये तो हम सभी जानते हैं की बेल के पेड़ की पत्तियों को ही बेलपत्र कहते हैं|अक्सर बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ आपस जुड़ी होती हैं लेकिन फिर भी इन्हें एक ही पत्ती माना जाता हैं. सदियों से ही यह मान्यता है की भगवान शिव की पूजा बेलपत्र के बिना सम्पूर्ण नहीं होती| आज हम आपको इसी बेल पत्र से जुडी कुछ विशेष जानकारी आपको देने वाले हैं
बेलपत्र की उत्पत्ति
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। चुंकि माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। अत: इस बेल पत्र में माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।
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बेल के सिर्फ पत्तों में ही नहीं बल्कि फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करती है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। इसीलिए बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
इस बेलपत्र को लेकर ऐसी भी मान्यता है की जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह श्रावण मास में बेल के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन के बराबर ही पुण्य मिलता है।