7 चक्र आपके शरीर बनाते हैं चमकदार, जानें कैसे करें जागृत
Youthtrend Religion Desk : कहा जाता हैं कि मानव शरीर में 7 तरह के मुख्य चक्र होते हैं जिनको ऊर्जा का मुख्य स्रोत कहा जाता हैं, ये भी बताया जाता हैं कि मानव शरीर में सभी सिद्धियों को हासिल करने के लिए सभी चक्रों को जाग्रत करना आवश्यक होता हैं, मनुष्य के शरीर में मौजूद कुंडलिनी शक्ति में बहुत से चक्र स्थित हैं जिसमें से 7 चक्र मुख्य हैं आज हम आपकों उन 7 चक्र के बारें में ही बताने जा रहें हैं।
7 चक्र । मूलाधार चक्र
मानव शरीर में सबसे पहला और मुख्य चक्र हैं मूलाधार चक्र, इस चक्र को आधार चक्र भी कहते हैं ये चक्र गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुड़ियों वाला होता हैं, कहा जाता हैं कि लगभग 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र तक सीमित रहती हैं और अंत में इसी चक्र में रहकर ही उनकी मृत्यु हो जाती हैं जिन लोगों के जीवन में निद्रा, संभोग और भोग की प्रधानता होती हैं मूलाधार चक्र के आसपास उनकी ऊर्जा एकत्रित रहती हैं।
मनुष्य जब तक इस चक्र में जीता हैं तब तक वो पशुवत रहता हैं इसी वजह से जब मनुष्य अपनी निद्रा, संभोग और भोग पर नियंत्रण रखता हैं तो लगातार इस चक्र पर ध्यान लगा सकता हैं जिसके बाद ये चक्र जाग्रत हो जाता हैं इस मूलाधार चक्र के जाग्रत होने से मनुष्य के अंदर वीरता, निर्भीकता के साथ आनंद का भी भाव उत्पन्न होने लगता हैं जो पुरूष सिद्धियां प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें इस चक्र को जाग्रत करना आवश्यक होता हैं।
7 । स्वाधिष्ठान चक्र
सात चक्र में से दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान चक्र हैं ये चक्र मानव शरीर में लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर मौजूद होते हैं और इसमें 6 पंखुड़ियां होती हैं, कहा जाता हैं कि अगर किसी मनुष्य की समस्त ऊर्जा इस स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित होती हैं तो उस व्यक्ति के जीवन में मौज-मस्ती, घूमना-फिरना, आमोद-प्रमोद और मनोरंजन ही सब कुछ होता हैं। मनुष्य इन गतिविधियों में समस्त जीवन इतना व्यस्त रहता हैं कि उसे अपनी पूरी ज़िंदगी का पता ही नहीं चलता।
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बताया गया हैं कि मनोरंजन जीवन में होना चाहिए लेकिन एक सीमा में रहकर ही, अगर व्यक्ति ज्यादा समय मनोरंजन में व्यतीत करता हैं तो उस व्यक्ति की चेतना बेहोशी की तरफ जाने लगती हैं। ये भी कहा गया हैं कि अगर किसी व्यक्ति का स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत हो जाता हैं तो व्यक्ति के अंदर निहित क्रूरता, गर्व, आलस्य, अवज्ञा, अविश्वास जैसे दुर्गुणों का ह्वास होता हैं और सिद्धियां प्राप्त करने के लिए इस चक्र को भी जाग्रत करना आवश्यक हैं।
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7 चक्र । मणिपुर चक्र
मनुष्य के शरीर में नाभि के मूल में स्थित होता हैं ये तीसरा चक्र जिसे मणिपुर चक्र कहा जाता हैं, ये मणिपुर चक्र 10 कमल की पंखुड़ियों से युक्त होता हैं, इस चक्र में व्यक्ति मनुष्य की चेतना एकत्रित होती हैं और उनके अंदर किसी भी काम को करने की धुन रहती हैं इन्ही लोगों को दुनिया कर्मयोगी के नाम से जानती हैं। इस मणिपुर चक्र को जाग्रत करने के लिए पेट से श्वास लेनी चाहिए, इस चक्र के जाग्रत होते ही व्यक्ति की तृष्णा, लज्जा, भय, मोह, घृणा, ईर्ष्या जैसे दोष दूर हो जाते हैं।
7 चक्र । अनाहत चक्र
किसी भी मनुष्य के हृदयस्थल में कमल के फूल की 12 पंखड़ियों जैसे 12 स्वर्णाक्षरों से सुसज्जित चक्र को ही अनाहत चक्र कहा जाता हैं, जिन मनुष्यों की ऊर्जा इसमे होती हैं वो मनुष्य रचनाकार होते हैं जैसे कवि, लेखक, चित्रकार, इंजीनियर इत्यादि। अगर रात को सोने से पहले इस चक्र पर विशेष ध्यान दिया जाए तो ये अनाहत चक्र जाग्रत होने लगता हैं, इस चक्र के जाग्रत होने से मनुष्य के अंदर से कपट, हिंसा, मोह, दंभ, अविवेक, अहंकार जैसी कुरीतियां समाप्त हो जाती हैं।
7 चक्र । विशुद्ध चक्र
मनुष्य के कंठ में जिस जगह सरस्वती का स्थान होता हैं वहां विशुद चक्र होता हैं, ये 16 पंखुड़ियों वाला होता हैं, कहा जाता हैं कि अगर किसी व्यक्ति की समस्त ऊर्जा विशुद्ध चक्र के आस-पास ही रहती हैं तो व्यक्ति काफी बलशाली होता हैं। विशुद्ध चक्र को जाग्रत करने के लिए ध्यान लगाना चाहिए और कंठ में संयम बरकरार रखना चाहिए, जिन मनुष्यों में विशुद्ध चक्र जाग्रत हो जाता हैं वो 16 कलाओं और 16 विभूतियों को जानने वाले ज्ञानी बन जाते हैं, इसके अलावा विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने से मनुष्य भूख और प्यास को रोक सकता हैं।
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7 चक्र । आज्ञाचक्र
दोनों आंखों के मध्य भृकुटी में होता हैं आज्ञाचक्र, जिस किसी भी मनुष्य की अगर ऊर्जा यहां सबसे ज्यादा सक्रिय होती हैं तो वो मनुष्य बुध्दि से संपन्न, तेज दिमाग वाला होता हैं, अगर भृकुटी के बीच में ध्यान लगाया जाए तो साक्षी भाव में रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत हो जाता हैं। इस चक्र के जाग्रत होने के बाद व्यक्ति के अंदर मौजूद सभी शक्तियां भी जाग्रत हो जाती हैं।
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7 चक्र । सहस्त्रार चक्र
ये अंतिम चक्र हैं सहस्त्रार चक्र, ये चक्र मस्तिष्क के मध्य भाग जहां चोटी रखी जाती हैं वहां होता हैं, अगर कोई भी मनुष्य सभी यम और नियम का पालन कर लेता हैं तो ये चक्र उसके आनंदमयी शरीर मे स्थित हो जाता हैं। पहले चक्र यानी मूलाधार चक्र से लेकर चक्र इस चक्र तक सभी चक्र को जाग्रत करके ही इस चक्र को जाग्रत किया जा सकता हैं, इस चक्र को ही मोक्ष का द्वार कहा गया हैं।