श्राद्ध पक्ष 2020: इस वर्ष गया में नहीं होंगे श्राद्ध कर्म, स्पष्ट नहीं ब्रह्मकपाल की स्थिति
Youthtrend Religion Desk : इस वर्ष पितृ पक्ष, श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू हो रहें हैं, श्राद्ध 16 दिनों तक चलते हैं, इन दिनों में लोग अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करतें हैं और उनके लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता हैं, प्रत्येक वर्ष पितरों के पिंडदान और तर्पण के लिए लाखों की संख्या में गया, उज्जैन और ब्रह्मकपाल जाते हैं लेकिन इस वर्ष कोरोना के संकट की वजह से इन पवित्र जगहों पर हालात बदल हुए हैं।
श्राद्ध के इन 16 दिनों का इंतजार इन सभी पवित्र जगहों के पुजारी और उनके परिवार पूरे वर्ष से करते हैं क्योंकि श्राद्ध के इन दिनों में उनकी अच्छी-खासी कमाई होती हैं, देश में सभी तीर्थ स्थल मार्च में लगे लॉकडाउन से ही बंद हैं तो ऐसे में इन सभी जगहों पर पिंडदान और तर्पण होगा या नहीं इसको लेकर संशय हैं। आज के इस लेख में हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि वर्तमान में अभी इन पवित्र स्थल के क्या हालात हैं और श्राद्ध के दिनों में यहां क्या प्रबंध हो सकते हैं।
श्राद्ध पक्ष 2020 : इस वजह से गया में नहीं होगा पितृ पक्ष
पितृ पक्ष के दौरान गया का है खास महत्त्व
बिहार राज्य में आने वाले गया को पिंडदान के लिए बहुत ही पवित्र माना जाता हैं बताया जाता हैं कि हर साल श्राद के समय लगभग 10 लाख लोग अपने पितरों को तर्पण करने के लिए आते हैं लेकिन इस बार कोरोना के चलते यहां लगने वाले पितृ पक्ष मेले को पूर्ण रूप से स्थगित कर दिया गया हैं। एक अनुमान के अनुसार यहां पिंडदान और श्राद्ध कर्म करवाने वाले लगभग 100 मुख्य परिवार हैं ऐसे में मेले के स्थगित होने से उनके सामने जीविका चलाने की बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगा। यहां के पुजारी गया प्रशासन से सामाजिक दूरी का पालन, सेनेटाईजेशन, मास्क लगाकर श्राद के दौरान पिंडदान कार्य शुरू करवाने की गुहार लगा रहें हैं।
क्यों माना जाता हैं गया को श्राद्ध करने के लिए सबसे बड़ा तीर्थ
पुराणों के अनुसार बहुत समय पहले गयासुर नामक एक दैत्य हुआ करता था जिसके दर्शन करने से ही या उसे स्पर्श करने से ही लोगों के पाप खत्म हो जाते थे, उस दैत्य का शरीर पांच कोस के बराबर था, जहां आज गया नगरी बसी हैं वहीं पर उसने देवताओं को यज्ञ करने के लिए अपने शरीर का बलिदान दिया था, यहां के पुरोहितों के मुताबिक गया जी में पिंडदान तो पूरे वर्ष में कभी किया जा सकता हैं।
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बहुत खास हैं ब्रह्मकपाल
देवभूमि उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के पास बह रही अलकनंदा नदी के तट पर स्थित हैं ब्रह्मकपाल तीर्थ क्षेत्र, बताया जाता हैं कि अकेले श्राद्ध पक्ष में लाखों की संख्या में लोग यहां आकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं, प्रशासन से पितृपक्ष के दौरान श्राद्धकर्म शुरू करने की बात चल रहीं हैं। जिस जगह ये पवित्र तीर्थ स्थल स्थित हैं वो बर्फ की वजह से 6 महीने के लिए पूरी तरह से उसमें समा जाता हैं इसलिए श्राद्धकर्म के दौरान ही यहां के पंडितों के लिए रोटी कमाने का अवसर होता हैं।
पुराणों में कहा गया हैं कि जब भगवान महादेव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मदेव का एक सिर काट दिया था तो ब्रह्मदेव का वो सिर शिवजी के त्रिशूल से चिपक गया तब भगवान शिव ने ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु अलकनंदा नदी में अपना त्रिशूल को डाला था जिसके त्रिशूल से ब्रह्मा जी का सिर त्रिशुल से हट गया, बताया जाता हैं कि पांडवों ने भी अपने पितरों का तर्पण ब्रह्मकपाल में किया था।
धर्मनगरी उज्जैन में नियमों का पालन करते हुए हो रहें हैं पिंडदान
शिप्रा नदी के तट पर बसा हैं धार्मिक नगर उज्जैन, यहां सिद्धवट वृक्ष हैं कहा जाता हैं इस वृक्ष को खुद माता पार्वती ने यहां लगाया था, इसके अलावा भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का मुंडन भी इसी जगह हुआ था। बताया जा रहा हैं कि उज्जैन में पिंडदान और तर्पण कार्य शुरू हो चुके हैं लेकिन सरकार के द्वारा जारी गाइडलाइंस का पालन करते हुए ही, पुजारी और पिंडदान करवाने आए सभी लोग मास्क लगाकर और सामाजिक दूरी का पालन करते हुए कार्य पूर्ण कर रहें हैं। इस समय हर किसी के लिए शिप्रा नदी में स्नान करना पूर्ण रूप से वर्जित हैं इसलिए नहाने के लिए ट्यूबवेल का इस्तेमाल किया जा रहा हैं कोरोना काल से पहले हर साल यहां लगभग 2 लाख श्रद्धालु आते थे।