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खजुराहों के मंदिर का इतिहास । History of Khajuraho Temple

Youthtrend Religion Desk : हमारा देश मंदिरों का देश हैं, यहां हर जगह आपकों अलग-अलग तरह के मंदिर मिल जाएंगे, कहीं शिव मंदिर मौजूद हैं तो कहीं भगवान श्रीराम का मंदिर, मगर हम जिस मंदिर की आज बात करने जा रहें हैं वो इन सब मंदिरों से हट कर हैं। हम बात कर रहें हैं मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में अपनी अदभुत शिल्पकला और कल्पना से परे बनी हुई मूर्तियों के लिए विश्वविख्यात खजुराहों के मंदिर की, ये मंदिर देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक हैं और ये बहुत से प्रसिद्ध मंदिरों का एक समूह हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी दीवारों पर बनी कामोत्तेजक मूर्तियां हैं जो यहां आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं आज हम आपकों खजुराहों के मंदिर का इतिहास बताने जा रहें हैं।

खजुराहों के मंदिर का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार खजुराहों के इन मंदिरों का निर्माण चंदेल वंश के शासक रहें चंद्रवर्मन ने करवाया था, बताया जाता हैं कि खजुराहों के मंदिरों का निर्माण लगभग 950 से लेकर 1050 ईसवी के मध्य हुआ था, जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था तो देश में चंदेल साम्राज्य का अधिपत्य था, राजा चन्द्रवर्मन जिन्होंने खजुराहों के मंदिर का निर्माण करवाया था उनके पिता भगवान चंद्र थे।

बताया जाता हैं कि जैसे ही देश में चंदेलों की ताकत बढ़ने लगी तो उन्होंने अपने साम्राज्य का नाम बदलकर बुंदेलखंड कर दिया, उसके बाद ही उन्होंने खजुराहों के इन हैरतअंगेज मंदिरों का निर्माण शुरू करवाया, इन विशालकाय मंदिरों के निर्माण में बहुत समय लगा, एक अनुमान के अनुसार लगभग 100 साल लगें खजुराहों के इन मंदिरों को पूरी तरह से तैयार होने में।

खजुराहों के मंदिर का इतिहास । समृद्धशाली रहा हैं खजुराहों का इतिहास

खजुराहों के मंदिर के निर्माण के बाद चंदेल वंश के राजाओं ने अपने राज्य की राजधानी उत्तर प्रदेश के महोबा को बना दिया था, जिसके बाद बहुत से हिन्दू राजा जिनमें राजा यशोवर्मन और राजा ढंगा भी शामिल थे, उन्होनें भी बहुत से हिन्दू मंदिरों का निर्माण खजुराहों में करवाया जिनमें यहां मौजूद लक्ष्मण और शिवजी को समर्पित विश्वनाथ मंदिर भी बनवाया था। इसके अलावा खजुराहों के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं कंदरिया महादेव का मंदिर जिसका निर्माण 1017 से 1029 ईसापूर्व में गंडा राजा के शासनकाल के दौरान हुआ था।

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खजुराहों के मंदिर पूरी दुनिया में अपनी कलाकृति के लिए प्रसिद्ध हैं, इन मंदिरों का निर्माण महोबा से लगभग 35 मील की दूरी पर हुआ था, कहा जाता हैं कि 12वीं शताब्दी तक खजुराहों के मंदिरों का सौंदर्य आकर्षण का केंद्र था लेकिन जब 13वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक जो उस समय दिल्ली का सुल्तान था उसने चंदेल साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने खजुराहों के मंदिरों से छेड़छाड़ की जिसके कारण मंदिर के सौंदर्य में बहुत कमी आ गई थी।

खजुराहों के मंदिर का इतिहास । मुस्लिम शासकों ने पहुंचाई मंदिरों को क्षति

कुतुबुद्दीन के मंदिर के मूल रूप से छेड़छाड़ करने के बाद 13वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक चंदेलों द्वारा बनाए गए खजुराहों के मंदिरों पर मुस्लिम शासकों ने अपना कब्जा कर रखा था, उन शासकों में से ज्यादातर शासकों ने इन मंदिरों की खूबसूरती को नष्ट कर दिया था, यहां तक कि सिकंदर लोदी जो लोदी वंश का एक शासक था उसने भी 1459 में खजुराहों के बहुत से मंदिरों को तोड़ दिया था।

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इतिहासकारों के अनुसार पहले खजुराहों के 20 किलोमीटर में हिंदू और जैन धर्म के मिलाकर कुल 85 मंदिर हुआ करते थे लेकिन अब देखरेख के अभाव के चलते 6 किलोमीटर के हिस्से में सिर्फ 20 मंदिर ही शेष हैं, इन मंदिरों से मूर्ति चोरी होने की बात भी सामने आती रहती हैं। लोगों के कुछ ऐसे समुदाय द्वारा जो इन कामोत्तेजक मूर्तियों को गलत संकेत समझते हैं उन्होंने इन मूर्तियों को ध्वस्त करने का भी प्रयास किया था जिसकी वजह से भी कुछ मूर्त्तियां जर्जर हालत में हैं।

खजुराहों के मंदिर का इतिहास । मंदिर से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी

जिस जगह खजुराहों का मंदिर स्थित हैं वो पहले यहां मौजूद खजूरों के जंगलों के लिए प्रसिद्ध था जिज़ वजह से ही इस जगह को खजुराहों कहा जाने लगा और खजुराहों के मंदिर का प्राचीन नाम खजुर्रवाहक था। खजुराहों के मंदिरों को तीन अलग-अलग समूह में बांटा गया हैं जिनमें पूर्वी समूह, दक्षिणी समूह और पश्चिमी समूह शामिल हैं, खजुराहों का ये मंदिर यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल हैं इन मंदिरों में मध्यकालीन महिलाओं के पारंपरिक जीवनशैली को कलाकृतियों की मदद से लाजवाब तरीके से पेश किया गया हैं।

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चंदेल शासक द्वारा बनवाये गए इस खजुराहों के मंदिर में हिन्दू धर्म के बहुत से देवी-देवताओं की आकृतियों को खूबसूरती से उकेरा गया हैं जिसमें भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी, और भगवान महेश मुख्य हैं। इस विशालकाय मंदिर को जटिल कुंडलीदार रचना के आधार पर बनाया गया हैं और इसकी बनावट पूरी दुनिया में सुप्रसिद्ध हैं, दूर से इस मंदिर को देखने में लगता हैं कि इसे चंदन की लकड़ी से बनाया हुआ पर असल में इन्हें सैंड स्टोन से बनाया गया हैं।

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