अर्धकुमारी गुफा: जहाँ 9 माह रही थी देवी आदिशक्ति
Youthtrend Religion Desk : मां वैष्णो देवी का दरबार एक ऐसा पवित्र दरबार हैं जहां जाने का मौका सबको नहीं मिलता हैं, माता के इस दरबार में वो लोग ही जा पाते हैं जिन्हें खुद माता रानी बुलाती हैं, ऐसे लोग खुद को भाग्यशाली मानते हैं, जम्मू के कटरा में त्रिकुटा पर्वत पर निवास करती हैं मां वैष्णो। कैसा भी मौसम हो मां के भक्तों पर उसका कोई असर नहीं पड़ता और पूरे साल भक्तगण अम्बे मां के दर आते हैं, नवरात्रों में तो यहां की रौनक और भी ज्यादा निराली लगती हैं वैश्यों मां के भवन से पहले पड़ती हैं अर्धकुमारी गुफा जहां माता रानी ने 9 महीने बिताए, आइये जानते हैं उस बारें में।
वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत समय पहले जम्मू के पास हंसाली नामक गांव में श्रीधर नाम के एक मां के भक्त रहा करते थे, वो और उनकी मां हमेशा माता रानी की पूजा में लीन रहता था, एक बार उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया उन्ही कन्याओं में मां वैष्णो देवी भी कन्या रूप में आ गई। पूजा होने के बाद मां वैष्णो वहीं रुक गई और श्रीधर से कहा कि पूरे गांव में सबको अपने यहां भंडारे का निमंत्रण दे कर आओ, श्रीधर ने सभी गांव वालों को निमंत्रण देने के साथ ही गुरु गोरखनाथ नाथ और उनके परम शिष्य बाबा भैरवनाथ को भी अपने घर आमंत्रित किया।
अगले दिन सभी लोग श्रीधर के घर पहुंच गए पर श्रीधर इस चिंता में था कि उन सबको भोजन कैसे कराए क्योंकि उनके पास इतना अनाज नहीं था इस चिंता में वो मां वैष्णो की आराधना करने लगा तभी उसने देखा कि वही कन्या जिसने भंडारे करने के लिए कहा था। उस कन्या ने आते ही चमत्कारी रूप से सारा भोजन जल्द से तैयार कर दिया और सब गांव वालों को खाना परोस दिया गया, जब वो कन्या भैरवनाथ के पास आई तो भैरवनाथ ने उनसे मांस, मंदिर मांगी तो कन्या ने कहां कि ये वैष्णो भंडारा हैं इसलिए यहां सिर्फ सात्विक भोजन ही मिलेगा। ये सुनकर भैरव क्रोधित हो गया और उसने कन्या को पकड़ना चाहा पर कन्या आसमान में उड़ कर त्रिकुटा पर्वत की ओर चल दी और भैरव भी उनके पीछे उड़ने लगा।
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भैरव से पीछा छुड़ाते हुए मां ने किया इस गुफा में प्रवेश
कहा जाता हैं कि मां ने भैरव से बचते हुए जिस गुफा में प्रवेश किया उसे ही अर्धकुमारी या अर्धकुंवारी गुफा कहा जाता हैं, इस गुफा में माता ने 9 महीने तक निवास किया, गुफा में प्रवेश करने से पहले माता रानी को बजरंग बली मिले थे जिन्हें प्यास लगी हुई थी तो माता ने बाण चला कर धरती में से पानी निकाला था जिसे पीकर हनुमान जी ने अपनी प्यास बुझाई थी, इस पानी के स्त्रोत को ही बाणगंगा कहा जाता हैं। माता ने गुफा के बाहर हनुमानजी को अपनी पहरेदारी के लिए रखा था, भैरव नाथ जब मां का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंचा तो उसने गुफा में प्रवेश करने का प्रयास किया पर हनुमानजी ने उसे रोक लिया और दोनों के बीच काफी भीषण युद्ध हुआ।
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जब मां ने देखा कि ये युद्ध खत्म नहीं हो रहा तो मां गुफा से बाहर आई और उन्होंने भैरव को चेतावनी दी कि वो यहां से चला जाए पर भैरव नहीं माना जिसके बाद मां ने महाकाली का रूप धारण किया और भैरव का संहार किया। मां महाकाली ने त्रिशूल से भैरव का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया था, भैरव का सिर कटकर दूर भैरव घाटी में जा गिरा था और वर्तमान में भैरों मंदिर वहीं स्थित हैं, मां ने जिस गुफा में उसे गर्भजून भी कहा जाता हैं