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अर्धकुमारी गुफा की रहस्यमयी बातें जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

Youthtrend Religion Desk : वैसे तो पूरे देश में बहुत से ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनकी बहुत ज्यादा मान्यता हैं ऐसा ही एक खास मंदिर हैं मां वैष्णो देवी, जम्मू के कटरा से 13 किमी ऊपर त्रिकुटा पर्वत पर विराजती हैं मां वैष्णो देवी, यहां मां के दर्शन करने के लिए पूरे देश से तो श्रद्धालु आते ही हैं इसके अलावा विदेशों से भी भक्त मां की झलक पाने को चले आते हैं। वैष्णो देवी में मां पिंडी रुप में मौजूद हैं जिनमें मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और मां महाकाली विराजमान हैं, मान्यता हैं कि जो भक्त माता के पिंडी रूप के दर्शन कर लेता हैं उसके पापों का नाश हो जाता हैं। वैसे तो मां का भवन चमत्कारी होने के साथ रहस्मयी भी हैं, जब हनुमानजी की प्यास बुझाने के लिए मां ने बाण चलाया था वो जगह आज बाणगंगा हैं, जब भैरव मां का पीछा कर रहा था तो जिस जगह रुककर मां ने मुड़ कर भैरव को देखा था वो जगह आज चरण पादुका के नाम से जानी जाती हैं। इसके अलावा भैरवनाथ से बचने के लिए जिस गुफा में मां ने 9 महीने तक निवास किया वो गुफा अर्धकुमारी या गर्भजून के नाम से जानी जाती हैं। आज हम आपकों माता की इस रहस्मयी गुफा के बारें में ही कुछ जानकारी देने जा रहें हैं।

रहस्यमयी हैं वैष्णो देवी की अर्धकुमारी गुफा

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कटरा से मां वैष्णो देवी की चढ़ाई शुरू करने के बाद मां के भवन पहुंचने से पहले बहुत से पवित्र स्थल आते हैं जैसैकि बाणगंगा, चरण पादुका, सांझी छत, अर्धकुंवारी गुफा इत्यादि, कहा जाता हैं कि अर्धकुमारी गुफा को ही गर्भजून भी कहा जाता हैं क्योंकि जिस प्रकार शिशु अपनी मां के गर्भ में 9 महीने रहता हैं उसी प्रकार मां ने इसी गुफा में पूरे 9 महीने तपस्या में लीन होकर बिताए थे और इस गुफा का आकर एक माता के गर्भ के समान ही दिखाई देता हैं। 9 महीने पूरे होने के बाद ही माता ने गुफा से बाहर आकर भैरवनाथ का वध किया था, देखने में ये गुफा बहुत ही छोटी सी हैं लेकिन कहा जाता हैं कि बड़े से बड़ा व्यक्ति भी बेहद आसानी से इसे पार कर लेता हैं। मान्यताओं के अनुसार इस गुफा में जाने वाले व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती हैं और उसका जीवन सुखमयी बीतता हैं।

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आखिर क्यों कहा जाता हैं इसे अर्धकुमारी गुफा

क्या आप जानते हैं मां वैष्णो देवी अभी भी त्रिकुटा पर्वत पर निवास करते हुए प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा कर रहीं हैं चलिए आपकों बताते हैं त्रेतायुग में रत्नाकर पंडित और उनकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी और वो हमेशा आदिशक्ति से संतान को लेकर प्रार्थना करते रहते थे, एक दिन एक बालिका ने पंडित के सपने में आकर कहा कि मैं तुम्हारे घर में जन्म लूंगी। उस तरह से उस बालिका ने जन्म ले लिया और उसका नाम त्रिकुटा रखा गया जब उनकी उम्र 9 साल की थी तो उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीराम के रूप में श्रीविष्णु ने इस धरती पर जन्म लिया हैं तब उन्होंने ये प्रण लिया कि वो सिर्फ श्रीराम से विवाह करूंगी|

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मात्र 10 साल की उम्र से ही उन्होंने श्रीराम की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी थी, काफी वर्षों के बाद जब भगवान श्रीराम लक्ष्मण जी के साथ सीता माता की खोज कर रहें थे तो तभी श्रीराम ने उस कन्या को देख कर उसके पास गए और तपस्या का कारण पूछा। कन्या ने श्रीराम को पहचान लिया था और कहा कि मुझे सिर्फ आप से विवाह करना हैं इसलिए मैंने ये तप किया, तब प्रभु राम बोले कि मैं इस जन्म में तो सीता का वर हूं, तब त्रिकुटा ने कहा कि फिर मैं आपकी प्राप्ति के लिए और कठिन तप करूंगी। श्रीराम ने कहा कि मैं जब सीता को लेकर लंका से लौटूंगा तो अगर तुमने मुझे पहचान लिया तो मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार लूंगा, जब प्रभु रावण को मारकर सीता माता के साथ अयोध्या लौट रहे थे तो बीच सफर में वो देवी त्रिकुटा का आश्रम एक बूढ़े ब्राह्मण के वेश में पहुंचे तो देवी त्रिकुटा उन्हें पहचान नहीं पाई।

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तब श्रीराम अपने असली स्वरूप में आकर बोले कि हे देवी तुम मुझे नहीं पहचान पाई इसलिए इस जन्म में हम तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते लेकिन जब कलयुग में कल्कि का अवतार लेकर धरती पर आऊंगा तब तुम्हें अपनी भार्या के रूप में स्वीकार करूंगा। तब भगवान श्रीराम ने कहा कि हे देवी तुम हिमालय में स्थित त्रिकुटा पर्वत पर जाकर तप करो और भक्तों के दुख और कष्टों का नाश करते हुए सबका कल्याण करो, विष्णु के वंश में जन्म लेने के कारण पूरा जगत तुम्हें वैष्णो देवी के नाम से ही जानेगा।

इस वजह से मां जब भैरव नाथ से बचने के लिए 9 महीने तक गुफा में रहीं थी तो उसे अर्धकुमारी या अर्धकुंवारी गुफा भी कहा जाता हैं।

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