बैकुंठ चतुर्दशी के दिन जलाए जाते हैं 14 दीपक, जानें क्या हैं इसके पीछे का रहस्य
बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती हैं| शास्त्रो के मुताबिक इस दिन व्रत किया जाता हैं और नदी, सरोवर या तालाब के किनारे पर 14 दीपक जलाया जाता है| भगवान विष्णु को कार्तिक माह समर्पित हैं और यह माह विष्णु जी को अत्यंत प्रिय हैं| इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 21 नवंबर यानि आज मनाया जा रहा हैं| परंपरा के मुताबिक इस 14 दीपक नहीं के किनारे जलाए जाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि नदी के किनारे दीपक जलाने के पीछे एक पौराणिक महत्व हैं, जिसके कारण ही यह परंपरा निभाई जाती हैं| इसलिए आज हम आपको इसके पौराणिक महत्व के बारे में बताएँगे|
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन 14 दीपक प्रज्वल्लित करने का रहस्य
भगवान शिव की पुजा करने के लिए विष्णु भगवान काशी में आए थे और काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट पर उन्होने स्नान किया और 1000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान शिव के पूजन का संकल्प किया| लेकिन शिव जी भगवान विष्णु की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल के पुष्प को कम कर दिया|
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ऐसे में जब विष्णु जी ने अचानक एक कमल पुष्प कम देखा और उन्होने अपने आंखो को ही चढ़ाने को प्रस्तुत हुये क्योंकि उन्होने सोचा की उनकी आंखे भी तो कमल जैसी ही हैं| विष्णु जी की भक्ति देखकर शिव जी प्रस्तुत हुये और बोले की हे! हरि मेरा तुम्हारे समान दूसरा कोई भक्त इस संसार में नहीं हैं और आज से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहीं जाएगी|
भगवान शिव ने कहा कि इस दिन जो भी मनुष्य भक्तिपूर्वक आपकी पुजा करेगा वो बैकुंठ को प्राप्त होगा| पुराणों के मुताबिक इस दिन जो मनुष्य 1000 कमल पुष्पो से विष्णु भगवान के बाद शिव जी की पुजा करेगा, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाएगा और बैकुंठ धाम को प्राप्त करेगा| पुरुषार्थ चिंतामणि के मुताबिक इसी दिन शिव जी ने विष्णु भगवान को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था|