ऋषि पंचमी 2019: बेहद ही खास है ये व्रत, मासिक धर्म से जुड़ी है इसकी कथा
हिन्दू धर्म में भादों माह त्योहार की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होता हैं| इस माह में ही जन्माष्टमी, हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी जैसे प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं| ऐसे ही भादों माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता हैं, यह त्योहार धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होता हैं| ऋषि पंचमी का त्योहार इस साल 3 सितंबर यानि आज मनाया जाएगा, यह त्योहार सप्तर्षि के रूप में प्रसिद्ध सात महान ऋषियों को समर्पित हैं| इस दिन पूरे विधि-विधान से ऋषियों का पूजन किया जाता हैं और फिर कथापाठ करके व्रत किया जाता हैं|
ऋषि पंचमी व्रत की कथा
बहुत समय पहले विदर्भ नामक एक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहते थे, उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक पुत्री और एक पुत्र थे| जब उनकी पुत्री बड़ी हुयी तो उन्होने अपनी पुत्री का विवाह एक अच्छे ब्राह्मण कुल में कर दिया, कुछ समय बाद उनकी पुत्री के पति का अकाल मृत्यु हो गया| पति के मरने के बाद उनकी पुत्री अपने पिता के घर आकर रहने लगी| एक दिन अचानक मध्य रात्री में ब्राह्मण के विधवा पुत्री के शरीर में कीड़े पड़ने लगे, जिसकी वजह से उसका स्वास्थ्य गिरने लगा|
पुत्री की ये हालत देखकर ब्राह्मण उसे एक ऋषि के पास ले गए, ऋषि ने बताया कि अगले जन्म में यह एक ब्राह्मणी थी और इसने एक बार रजस्वला होने पर भी घर के बर्तन छु लिए थे और काम करने लगी| जिसके कारण यह पाप की भागी हो गयी और इसके शरीर में कीड़े पड़ गए| दरअसल शास्त्रों में रजस्वला स्त्री का कार्य करना वर्जित होता हैं और ब्राह्मण की पुत्री ने इसका पालन नहीं किया, जिसके कारण उसे दंड का भागी होना पड़ा| ऐसे ऋषि ने कहा कि यदि कन्या ऋषि पंचमी का पूजा-व्रत पूरे श्रद्धा भाव के साथ करती हैं तो उसे क्षमा मिल जाएगा| ऐसे में उस कन्या ने वही किया जो ऋषि ने बताया और वह समस्त पापो से मुक्त हो गयी|
ऋषि पंचमी का महत्व और पूजाविधि
इसे लेकर ऐसी मान्यता हैं कि यह व्रत करना काफी फलदायी होता हैं| इस दिन व्रत और पूजा करने के बाद कथा सुनने का विधान हैं| इससे व्यक्ति को अपने सभी पापों से मुक्ति मिल जाती हैं| यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव को दर्शाता हैं| लेकिन आज के समय में यह व्रत ज़्यादातर सिर्फ महिलाएं ही करती हैं| इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी खास महत्व होता है। ऋषि पंचमी की पूजा के लिए सप्त ऋषियों के प्रतिमाओं की स्थापना करे और उन्हें पंचामृत से स्नान कराये| अब उन पर चन्दन का लेप लगाए और फिर फूलों एवं सुगंधित पदार्थों और धूप-दीप इत्यादि अर्पित करे| अब सफेद वस्त्रों, यज्ञोपवीत और नैवेद्य से पूजा और मंत्र का जाप करे, ऐसा करना आपके लिए लाभदायी माना जाता हैं|
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