काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से पहले जरूर जान लें ये बात वरना होगा पछतावा
वाराणसी एक ऐसा शहर हैं जिसका उल्लेख वेदों-पुराणों में मिलता हैं| वाराणसी धार्मिक शहर के रूप में जाना जाता हैं| वाराणसी में बसा काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगो में से एक है। यह मंदिर काशी में पिछले कई हजार साल से स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
लोग मोक्ष पाने के लिए काशी में आते हैं और अपने पाप गंगा में स्नान कर धोते हैं| काशी में भगवान शिव विश्वेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग में निवास करते हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में काशी विश्वनाथ का नौवां स्थान है। शिव जी के इस मंदिर को महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने सन 1780 में बनवाया था। बाद में फिर लाहौर के महाराजा रंजीत सिंह ने बाद में इसको शुद्ध सोने दृारा मढ़वाया।
यह भी पढ़ें : बदरीनाथ धाम में उगे चमत्कारिक पौधे, वैज्ञानिक भी देखकर हैं हैरान
मान्यता हैं की सावन के महीने में यहां पर दर्शन करने से लाभ मिलता है तथा इस दौरान जल चढ़ाने से बाबा प्रसन्न होते हैं। मंदिर के भीतर, एक अत्यंत अनोखे प्रकार के द्वार से पहुंचा जाता है, यह भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण शिवलिंग है। यहां का शिवलिंग चिकने काले पत्थर से बना हुआ है। इसे ठोस चांदी के आधार में रखा गया है| माना जाता हैं की काशी में प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ती होती है।
भगवान भोलेनाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे मृत्य व्यक्ति आवगमन के चक्कर से छूट जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं| विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हुये हैं।
वर्ष 1676 ई. में रीवा नरेश महाराजा भावसिंह तथा बीकानेर के राजकुमार सुजानसिंह काशी यात्रा पर आए थे। उन्होंने विश्वेश्वर के निकट ही शिवलिंगों को स्थापित किया। श्रुति स्मृति इतिहास तथा पुराण आदि के अनुसार काशी सकल ब्रह्मांड के देवताओं की निवास स्थली है, जो शिव को अत्यंत प्रिय है।
काशी में शिव के अनेकानेक रूप विग्रह, लिंग आदि की पूजा-अर्चना की जाती है। शिवपुराण के अनुसार काशी में देवाधिदेव विश्वनाथजी का पूजन-अर्चन सर्व पापनाशक, अनंत अभ्युदयकारक, संसाररूपी दावाग्नि से दग्ध जीवरूपी वृक्ष के लिए अमृत तथा भवसागर में पड़े प्राणियों के लिए मोक्षदायक माना जाता है। वाराणसी को शिव की नगरी काही गयी हैं| इस प्राचीन शहर के अस्तित्व को देखने के लिए विश्व भर से लोग आते हैं|