तो इन वजहों से बनारस में इतनी भव्यता से मनाई जाती है देव दीपावली, जानिए इसके पीछे के ये 6 कारण
देव दीपावाली का हमारे हिन्दू समाज में एक अलग ही महत्व है, दीपावाली से पंद्रह दिन के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीवाली मनाई जाती है। बहुत जगहों पर देव दीवाली मनाई जाती है लेकिन बनारस में इसका खास महत्व होता है। बताते चलें की बनारस में देव दीपावाली बड़े हर्षों-उल्लास के साथ मनाया जाता है, वहां गंगा के घाट पर भव्य रूप से सजावट और पूजा की जाती है।
काशी में मनाया जाने वाले इस खास त्योहार, देव दीपावाली को देखने और इसमे शामिल होने के लिए दूर दूर से लोग यहाँ आते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि बनारस में ही क्यों देव दीपावाली मनाई जाती है। अगर नहीं सोचा तो चलिये आज हम आपको बताते हैं की आखिर बनारस में ही देव दीपावाली को इतने भव्य तरीके से क्यों मनाया जाता है और इसे मनाने के पीछे क्या वजह है।
बनारस में देव दीपावली मनाने की वजह है बहुत ही खास
- ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं और इसी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतर कर बनारस के घाट पर दीप जलाकर उनका स्वागत करते हैं।
- ऐसा भी माना जाता है कि भगवान विष्णु से पहले माँ लक्ष्मी जग जाती हैं और इसलिए दीपावली के ठीक पंद्रहवें दिन कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है।
- कहा जाता है की पहले तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक फैला हुआ था, तभी भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन उस राक्षस का वध किया जिसकी खुशी में देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था।
यह भी पढ़ें : वाराणसी दौरे पर आए प्रधानमंत्री मोदी ने बना डाला ऐसा इतिहास जो अब तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया
- सबसे पहले 1915 में देव दीवाली कि परंपरा को बनारस में हजारों दिए जलाकर शुरू किया गया था। तभी से बनारस के घाट पर देव दीवाली मनाई जाती है।
- नारायण गुरु नामक एक समाजसेवी ने कुछ युवाओं की टोली बनाकर कुछ घाटों से दीपोत्सव की शुरुआत की और ये धीरे धीरे दूसरे घाटों पर भी फैलता गया।
- ऐसा भी कहा जाता है कि काशी में शहीदों को समर्पित करने के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन भव्य तरीके से देव दीवाली मनाई जाती है।