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Ramzan Special: रमज़ान या रमादान? जानें क्या है इन शब्‍दों का इतिहास

Ramzan Special: रमज़ान या रमादान? जानें क्या है इन शब्‍दों का इतिहास

रमज़ान का पाक महीना शुरू हो चुका है सभी मुसलमानो ने मंगलवार को पहले रोज़े के साथ रमज़ान का आगाज़ कर दिया है। अब आगे आने वाले 30 दिनों तक सहरी और इफ्तारी का सिलसिला चलता रहेगा। बाज़ारों में भी रमज़ान शुरू होने ही साथ ही रौनक हो गयी है। इस पाक महीने का सभी मुसलमान बेसब्री से इंतज़ार करते हैं और इसके आने पर पूरे उत्साह से इतनी गर्मी होने के बावजूद खुदा की इबादत में रोज़े रखते है जिसमे 14 घंटों तक बिना कुछ खाये और पिए रहने होता है।

हम आज रमज़ान से ही जुड़ी एक दिलचस्प बात आपको बताएँगे। आपने यह तो सुना होगा कि रमज़ान को बहुत से लोग रमादान भी कहते हैं लेकिन यह बहुत कम लोगो को पता कि इसकी वजह क्या है। वैसे तो इस बात को लेकर मुस्लिम समाज में अक्सर ही बहस छिड़ी रहती है लेकिन हम बताएँगे कि दोनों में से कौन सा उच्चारण है सही।

Ramzan Special: रमज़ान या रमादान? जानें क्या है इन शब्‍दों का इतिहास

आपको बता दें कि यह दोनों उच्चारण ही सही हैं। रमादान एक अरबीं शब्द है जो पवित्र महीने का वर्णन करता है, जबकि रमजान, यह एक फ़ारसी शब्द है जिसका प्रयोग भारत में किया जाता है। यह शब्द फ़ारसी भाषा से अब उर्दू में ले लिया गया है। चूंकि भारतीय मुस्लिम संस्कृति, जो आपको लखनऊ, हैदराबाद, मुज़फ़्फ़रनगर, अलीगढ़ और अन्य शहरों में अनुभव करने के लिए मिलती है, वह फ़ारसी संस्कृति से बहुत अधिक प्रभावित होती है, इसलिए रमज़ान शब्द का उपयोग हमारे देश में अधिक सुना जाता है। हालाँकि, दुनिया भर में अरबी संस्कृति और परंपराओं के प्रभाव अधिक है, जबकि दक्षिण एशियाई देशो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश फ़ारसी संस्कृति से प्रभावित हैं।

भारत और अरबी देशों में रमज़ान और रमादान क्यों कहा जाता है इसके पीछे उच्चारण का ही अंतर है। हालाँकि दोनों ही भाषाओँ में लिखने का तरीका सामान ही है। फ़ारसी भाषा में रमज़ान बोलते हैं और अरबी में रमादान बोलते हैं, क्योंकि उनकी भाषा में ‘ज़’ अक्षर है ही नहीं। वह ‘ज़’ को ‘द’ पढ़ते हैं, इसलिए अरबी भाषी लोग रमज़ान को रमादान बोलते हैं। भारत में भी जो लोग अब अरब से प्रभवित हैं वह रमज़ान को रमादान ही कहते हैं।

Ramzan Special: रमज़ान या रमादान? जानें क्या है इन शब्‍दों का इतिहास

हिंदुस्तान टाइम्स के एक पत्रकार रईज़ुल हसन लश्कर ने रमज़ान और रमादान के उच्चारण को समझाने के लिए कुछ शब्दों का उदाहरण दिया है, जिन्हें उर्दू या फरसी में कुछ और कहा जाता है, लेकिन अरबी में उसे कुछ और ही कहते हैं। जैसे अरबी में ‘रोज़ा’ शब्‍द नहीं है, इसे वहां सौम कहते हैं. सेहरी को अरबी में सुहूर कहते हैं, नमाज़ को अरबी में सलह कहते हैं, अज़ान को अरबी में अधान कहा जाता है और बुर्का को अरबी में अबाया कहते हैं।

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