आखिर, प्रधानमंत्री को ही क्यों होता है हवाई जहाज से चुनाव प्रचार करने का अधिकार
देश में आम चुनाव होने वाले हैं और सभी पार्टियां देश की जनता को लुभाने के लिए कई सारे प्रयास कर रही है| ऐसे में देश का प्रधानमंत्री ही एक ऐसा व्यक्ति होता हैं जो चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल कर सकता हैं, ये सुविधा प्रधानमंत्री को कैसे मिली, इसकी एक रोचक कहानी हैं| इस नियम की शुरुआत साल 1952 यानि पहली चुनाव से ही हो गयी थी| हालांकि उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री सरकारी विमान से चुनाव प्रचार नहीं करना चाहते थे और उस समय कांग्रेस के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वो चार माह तक चलने वाले चुनाव प्रचार के लिए अपने खर्च पर विमान उपलब्ध करा सके|
तब निकाला गया फार्मूला
उस समय जवाहर लाल नेहरू अपने जिद पर अड़े थे कि वो चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल नहीं करेंगे एक चतुर ऑडिटर जनरल ने एक सुविधाजनक फार्मूला निकालकर नेहरू की नैतिक आपत्ति को खत्म कर दिया| दुर्गादास की किताब ‘कर्जन टू नेहरू’ में इस बात का उल्लेख किया गया है| इस किताब में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री के जीवन को सभी तरह के संकटों से बचाना जरूरी है और यह तभी हो सकता है जबकि प्रधानमंत्री विमान से यात्रा करें|
इतना ही नहीं यदि प्रधानमंत्री विमान से यात्रा करेंगे तो ज्यादा स्टॉफ की जरूरत नहीं पड़ेगी और यदि कोई उनके साथ यात्रा करता हैं तो उसे अपना किराया देना पड़ेगा या फिर पीएम अपने स्टॉफ का किराया देंगे| इस तरह से पूरे खर्च का छोटा सा हिस्सा देकर तत्कालीन नेहरू को हवाई यातायात की सुविधा प्राप्त हो गई और इसकी वजह से उनकी क्षमता कई गुना बढ़ गयी| इतना ही नहीं यह सुविधा सिर्फ नेहरू को नहीं बल्कि देश के अन्य प्रधानमंत्रियों को दी गयी|
यह भी पढ़ें : पीएम मोदी ने ट्विटर पर अपने नाम के आगे जोड़ा “चौकीदार”, अन्य नेताओं ने भी दिया साथ
दरअसल भारतीय प्रधानमंत्री का अधिकृत विमान एयर इंडिया वन है| लेकिन यदि उन्हें ऐसी जगहों पर जाना पड़ा, जहां एयरपोर्ट नहीं है तो फिर एयरफोर्स उन्हें छोटा विमान या हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराता है और इसका खर्च पीएमओ वहन करता है| बता दें कि एक आरटीआई में पूछे गए सवाल के जवाब में बताया गया था कि फरवरी 2014 से मई 2017 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 128 गैर आधिकारिक यात्राएं की थीं और इसके लिए पीएमओ ने एयरफोर्स को 89 लाख रुपए खर्च किए थे|