नवरात्र में कैसे करें कन्या पूजन, जाने महत्व और पूजन विधि
जैसे की आप सभी को पता होगा की नवरात्र की पूजा कितने धूम-धाम से मनाई जाती है। ये पूजा साल में दो बार होती है लेकिन हम शरदीय नवरात्र को ज्यादा खास मानते है और ये पूजा विशेष तरीके से होती भी है। इस पूजा में सबसे ज्यादा महत्व कन्या पूजन का होता है क्योकी ऐसा माना जाता है की कुँवारी कन्याओ में माँ दुर्गा के नौ रूपों का वास होता है। लोग मानते है की कन्याओ के पूजन करने से और देवियो की तरह सत्कार और खाना खिलाने से माँ दुर्गा भी बहुत प्रसन्न होती है, और अपने भक्तो से प्रसन्न होकर उन्हें सरे सुखो और समृद्धि का आशीर्वाद देती है।
नवरात्र में लोग नौ दिनों तक उपवास करते है और नवमी या दशमी को कन्याओ की पूजा कर प्रसाद लेकर अपना उपवास तोड़ते है। कुछ लोग तो सप्तमी के दिन से ही कन्या का पूजन शुरू कर देते है। इस पूजा में कन्याओ की उम्र दो वर्ष से दस वर्ष तक होती है और नौ कन्याओ को एक साथ बिठाकर उनकी पूजा की जाती है। उनके साथ एक बालक भी होना जरूरी है।
देखें विडियो : आखिर वेश्यालय की ही मिट्टी से क्यों बनाई जाती है माँ दुर्गा की प्रतिमा, जानें क्या हैं इसका रहस्य
जैसे माँ दुर्गा की पूजा भैरव के बिना पूरी नहीं होती ठीक वैसे ही कन्या पूजा में भी एक बालक होना जरूरी होता है। कन्याएँ 9 से ज्यादा भी रहे तो कोई समस्या नहीं है। कन्याओ को एक दिन पहले आमंत्रित किया जाता है। कन्याओ को साफ-सुथरे जगह पर बिठाकर उनके पैरो को दूध, दूध वाले थाली में रखकर धोना चाहिए फिर उनका आशीर्वाद लेना चहिए। उसके पशचात उनके माथे पर अक्षत,फूल और कुंकुम का टिका लगते है। फिर माँ का ध्यान कर उन कन्याओ के इच्छानुसार भोजन कराते है। उसके बाद अपने समथर्य के अनुसार दक्षिणा दे कर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते है।
दो वर्ष की कन्या पूजन से दुःख और दरिद्रता दूर होती है तीन वर्ष की कन्यापूजन से धन की कमी नहीं होती। चार वर्ष की कन्यापूजन से परिवार सुखी रहता है। पांच वर्ष की कन्यापूजन से सरे रोग नष्ट हो जाते है। तथा छः वर्ष की कन्यापूजन से राजयोग मिलता है। सात वर्ष वाली कन्यापूजन से ऐक्ष्वर्य और आठ वर्ष की कन्यापूजन से किसी के साथ झगड़ा नहीं होता। नौ वर्ष की कन्या साक्षात्र पर विजय होती है। था दस वर्ष की कन्या की पूजन से सारी मनोकामनाये पूरी हो जाती है।