सावन का तीसरा सोमवार और नागपंचमी पड़ने वाला है एक साथ, जानें क्या है शिव से नागों का संबंध
5 अगस्त को नागपंचमी का पर्व और सावन का सोमवार भी हैं और ऐसा संयोग 125 सालों बाद बना हैं| ऐसे में भगवान शिव और नागदेवता दोनों का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता हैं क्योंकि नाग, भगवान शिव के गले का हार हैं| ऐसे में आइए जानते हैं कि भगवान शिव और नागों का क्या संबंध हैं और नागों को भगवान शिव के गले का हार क्यों कहा जाता हैं|
भगवान शिव से नागों का संबंध
शास्त्रों के मुताबिक वासुकी नाग ने भगवान शिव की सेवा करना स्वीकार किया था और यह कैलाश पर्वत के पास ही अपना राज्य चलाता था| वासुकी के ही तरह अन्य नाग भी अपना कुल अलग-अलग जगहों पर चलाते लेकिन वासुकी भगवान शिव का परम भक्त था, जिसके कारण भगवान शिव ने उसे अपने गणों में शामिल किया और नागों ने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा शुरू की थी|
नागों की उत्पत्ति
शिव पुराण के मुताबिक सभी प्रकार के सर्पों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नि कद्रू की कोख से ही हुई है और ऐसा माना जाता हैं कि कद्रू ने हजारों पुत्रों को जन्म दिया, इनमें अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक नाग भी शामिल थे, कद्रू को प्रजापति दक्ष की पुत्री माना जाता हैं|
भारत में शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला पांच कुल के नागों को ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और इनका वंश कश्यप था, इन्हीं से नाग वंश आगे बढ़ा। शेषनाग को नागों का राजा माना जाता है और शेषनाग को अनंत नाग भी कहा जाता है। इसी क्रम में वासुकी, तक्षक और पिंगला है। इन पांचों कुलों में सिर्फ वासुकी ने भगवान शिव की सेवा करना स्वीकार किया और वो भगवान शिव के गणों में शामिल हो गया|
भगवान शिव और नागों की कथा
जब देवताओं और राक्षसों के बीच अपने वर्चस्व को लेकर युद्ध हो रहा था, उस समय भगवान विष्णु ने देवताओं और राक्षसों को समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया था, समुद्र मंथन में मेरु पर्वत पर वासुकी नाग को रस्सी की तरह लपेटने का भी सुझाव दिया था। जब समुद्र मंथन हुआ तब उसमें से चौदह रत्न निकले और इन्हीं रत्नों में विष भी था लेकिन विष को कोई पीने को तैयार नहीं था| ऐसे में भगवान शिव ने इस विष को पीना स्वीकार किया और जब वो विष पी रहे थे तो उसी समय कुछ विष की बुँदे वासुकी के ऊपर गिर गया और इस तरह नागों में विष उत्पन्न हो गया|
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