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आजीवन कारावास का अर्थ कितने साल के कारावास से है ?

आजीवन कारावास का अर्थ कितने साल के कारावास से है ?

आजीवन कारावास यानी की उम्र कैद की सजा भारत में दी जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी सजा होती है, जिसका पहला प्रावधान हमें IPC की धारा 53 में देखने को मिलता है| IPC की धारा 53 हमें मुजरिमों को दिए जाने वाली सभी सजाओं से परिचित करवाती है| IPC section 53 में दी जाने वाली सभी सजाओं को निम्नलिखित 5 भागों में बाँटा गया है- 

आजीवन कारावास का अर्थ कितने साल के कारावास से है ?

1. Death Punishment / मौत की सजा 

2. Life Imprisonment / आजीवन कारावास

3. कारावास imprisonment (Imprisonment मतलब कारावास को दो भागों में बांटा गया है|

Simple – Rigorous Imprisonment / साधारण -सक्षम कारावास )

4. Fine / जुर्माना 

5 Forfeiture Of Property / सम्पती का समापहरण

आजीवन कारावास यानी की जीवनभर कारावास के नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि जब तक इंसान का जीवन समाप्त ना हो जाए तब तक उसे कारावास में ही रखा जाएगा| लेकिन फिर भी काफी लोगों का आज भी यही मानना है कि कारावास का मतलब 12 वर्ष, 14 वर्ष या 30 वर्ष तक मिलने वाली कारावास की सजा होती है| शायद इस विषय में लोगों का ऐसा सोचना काफी हद तक सही भी है क्योंकि काफी मामलों में ऐसा देखा गया है कि कैदी को कुछ 14 से 20 वर्षों के भीतर छोड़ दिया जाता है| लेकिन अभी भी लोगों का यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि आजीवन कारावास केवल कुछ वर्षों तक की सजा है| दरअसल, आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को अपना बाकी बचा हुआ पूरा जीवन मौत आने तक कारावास में भी गुजारना पड़ता है|

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आजीवन कारावास का अर्थ कितने साल के कारावास से है ?

आजीवन कारावास : क्या कहता है संविधान?

आजीवन कारावास की सजा कोर्ट के द्वारा IPC के Section 53 के तहत सुनाई जाती है| कोर्ट का काम केवल सजा सुनाना होता है लेकिन सजा के पालन की पूरी ज़िम्मेदारी राज्य सरकार के उपर होती है| आजीवन कारावास से एक बात तो स्पष्ट ही जाती है कि यह आजीवन कारावास की सजा है| जिसका सीधा मतलब है कि इंसान को अपना बचा हुआ मौत तक पूरा जीवन कारावास में ही गुजारना होगा| लेकिन फिर भी कुछ मामलों में ऐसा होता है कि कैदियों की 14 से 30 वर्षों के भीतर ही रिहा कर दिया जाता है आखिर ऐसा क्यों है? तो जैसा की हमने उपर बताया था कि कैदियों को सजा देने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार की होती है| 

ऐसे में राज्य सरकार को संविधान में निहित सीआरपीसी की धारा- 432 एवं धारा 433-A के तहत कुछ विशेष अधिकार दिए गये है| इन अधिकारों के तहत राज्य सरकार, उचित सरकार को सजा के विषय में एक प्रस्ताव भेज सकती है जिसके तहत किसी भी कैदी की सजा को कम अथवा निलंबित भी किया जा सकता है| हालांकि, किसी भी शर्त पर राज्य सरकार किसी कैदी को 14 वर्ष से पहले जेल से नहीं छोड़ सकती है| अगर कोई कैदी 14 वर्ष तक सजा काट चुका है, तो इसके बाद ही राज्य सरकार उसकी सजा को कम अथवा निलंबित कर सकती है| 

सजा कम या निलंबित क्यों करती है राज्य सरकार ?

अब तक हम यह जान चुके है कि राज्य सरकार किसी भी कैदी की सजा को कम अथवा निलंबित कर सकती है| लेकिन अभी भी काफी लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर सरकार ऐसा करना क्यों चाहेंगी? इस बात का सीधा जवाब यह है कि सरकार कुछ महत्वपूर्ण कारणों के चलते ही ऐसा करती है| 

कई बार ऐसा भी होता है कि कैदी किसी बड़ी बीमारी से जूझ रहा हो, उसके पास पहले ही समय कम हो या फिर कैदी का चाल चलन काफी अच्छा हो, साथ ही ऐसे बहुत से प्रभावी कारण हो सकते है जिसके चलते राज्य सरकार कैदी की सजा कम अथवा निलंबित करने का फैसला कर सकती है| लेकिन अभी भी यह कहना गलत होगा कि आजीवन कारावास बस कुछ वर्षों की सजा है| यह पूरी तरह से हमने स्पष्ट कर दिया है कि यह उम्र भर, जब तक मौत ना आ जाए तब तक की सजा है|  

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