जानें, मोदी ने कालभैरव में ही क्यों की पूजा, क्या है इसकी खास वजह
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी अपना नामांकन पत्र भरने और जनता को सम्बोधित करने के लिए गुरुवार को वाराणसी पहुंचे। कल हुए रोड शो के बाद प्रधानमंत्री आज कलेक्ट्रेट पहुंचे अपना नामांकन पत्र दाखिल करने। लेकिन इस काम को करने से पहले मोदी काशी के कोतवाल कहे जाने वाले बाबा भैरव के दर्शन करने मंदिर पहुंचे। मंदिर पहुंच कर उन्होंने पूजा-अर्चना की और बाबा का आशीर्वाद लिया। आज कालाष्टमी के दिन ही कालभैरव की पूजा की जाती है और इसी दिन पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के पहले बाबा भैरव का आशीर्वाद लिया। मान्यता यह है कि काशी में कोई भी कार्य भैरव की अनुमति लेना आवश्यक है।
क्या है हिन्दू धर्म में बाबा कालभैरव की कथा ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और भगवान् ब्रह्मा के बीच कौन श्रेष्ठ है इस बात को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद का जब कोई हल नहीं निकला तो वह दोनों भगवन शिव के पास पहुंचे। वहां भी दोनों का विवाद न सुलझ पाने की दशा में ब्रह्मा जी का पांचवा मुख शिव जी आलोचना करने लग गया। इस पर भगवन शिव को अत्यंत क्रोध आ गया और इस क्रोध से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुयी। काल भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा का पांचवा सर अपने नाखुनो से काट दिया और इसी के बाद ब्रह्मा जी चतुर्मुख हो गए।
सर काटते ही ब्रह्मा का सर काल भैरव के हाथ पर चिपक गया। तब शिव ने काल भैरव से कहा कि उन पर ब्रह्म हत्या का दोष है और दोष से मुक्ति के लिए उनको तीनो लोकों का भ्रमण करना पड़ेगा। इस भ्रमण के बीच जिस भी जगह ब्रह्मा का सर उनके हाथ से छूट जाएगा वही पर उनको पाप से मुक्ति मिलेगी। जब काल भैरव काशी पहुंचे तो ब्रह्मा का सिर उनके हाथ से छूट गया और भगवन शिव वहां प्रकट होकर बोले कि तुम काशी के कोतवाल कहलाओगे और इसी रूप में तुम पूजे जाओगे। आज काल भैरव को काशी का रक्षक कहा जाता है और मान्यता है कि काल भैरव की अनुमति के बिना यमराज भी काशी में प्रवेश नहीं कर सकते।
कहाँ स्तिथ है काल भैरव का मंदिर ?
काल भैरव काशी में बाबा विश्वनाथ की मंदिर से दो किलोमीटर दूर स्तिथ है। बाबा विश्वनाथ को काशी नगर का राजा माना जाता है और काल भैरव को उनका रक्षक। मान्यता है कि जो भी काशी विश्वनाथ का दर्शन करने के लिए पहुँचता है, उसे काल भैरव के दर्शन भी करने चाहिए अन्यथा उसका दर्शन अधूरा रह जाता है। कुत्तों को दूध और भोजन खिलाने की भी परंपरा है, जो कि काल भैरव की सवारी माना जाता है। वाराणसी में, कई प्रार्थनाएँ और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं काल भैरव के मंदिर में।