International Yoga Day : भगवद्गीता में भी किया गया है योग का वर्णन, भगवान श्री कृष्ण ने कही थी ये बातें
आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ( International Yoga Day ) के अवसर पर अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, डब्लीन से लेकर शंघाई तक भारत के साथ पूरी दुनिया योग कर रही है। बता दें की योग का संबंध ना सिर्फ हमारे शरीर से बल्कि हमारे मन, हृदय और आत्मा से भी होता है। ऐसा कहा जाता है की यदि हम योग को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते है तो इस योगमय जीवनशैली से हमे स्वास्थ्य लाभ तो मिलता ही है साथ ही साथ हमारी मानसिक चेतना भी विकसित होती है और इसके साथ ही हम और अधिक ऊर्जावान होंगे और हम अपनी आत्मा यानी स्वयं को बेहतर तरीके से पहचान पाएंगे।
आपको बता दें की पिछले कुछ वर्षों में योग के प्रति लोगों की काफी ज्यादाबढ़ी है मगर आमतौर पर योग को आसन, व्यायाम और प्राणायाम तक सीमित कर दिया जाता है। मगर आपकी जानकारी के लिए बता दें की ये सभी योग की मात्र शुरुआती कलाएं हैं जिनकी मदद से आपके शरीर को स्वस्थ रखने पर केंद्रित हैं।
आज भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने चौथे विश्व योग दिवस के मौके पर उत्तराखंड के देहारादून स्थित एफ़सीआई कैम्पस में 50 हज़ार लोगों के साथ योग कर पूरी दुनिया को एक स्वस्थ्य रहने का संदेश दिया। इसके अलावा देश के तमाम अन्य हिस्सों मे भी योग दिवस पर अलग अलग क्षेत्रों से आम जनता तथा सेना आदि ने भी योग किया।यहाँ योग करने के साथ ही पीएम ने कहा, योग ने दुनिया को ‘इलनेस’ से ‘वेलनेस’ का रास्ता दिखाया। उन्होंने कहा कि योग ने दुनिया में भारत को एक अलग पहचान दिलाई है, देवभूमि उत्तराखंड के बारे में उन्होंने कहा कि यहां का मौसम योग और आयुर्वेद के लिए हमें प्रेरित करता है।
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गीता में भी है योग का उल्लेख
वैसे तो योग को पहचान मिली पिछले कुछ वर्ष पहले वो भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से मगर आपको यह भी पता होना चाहिए की योग का इतिहास कुछ वर्षों का नही बल्कि सदियों पुराना है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, “योगःकर्मसु कौशलम्’ जिसका मतलब है की योग से कर्म में कुशलता आती है। इसी तरह श्री कृष्ण यह भी कहते है, “सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते” अर्थात अंतःकरण की शुद्धि से ज्ञान मिले, न मिले-दोनों ही दशाओं में सम रहें, यही योग है।
आप देखेंगे तो यह महसूस करेंगे की आमतौर पर हमारी सभी समस्याओं की जड़ हमारा मन ही होता है। मन का जितना विस्तार होता जाता है, आत्मा का स्थान उतना सिकुड़ता जाता है और योग से हम अ-मनी दशा की ओर बढ़ते हैं। ऐसा माना जाता है की मन के पार जाने की कला सीखते ही ध्यान और समाधि घटित होती है और तब परमात्मा से साक्षात्कार होता है जिसके बाद आपको परमानंद की प्राप्ति होती है। असल में देखा जाए तो योग अध्यात्म का विज्ञान है, यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है, जो आपका अनुभव भी बन सकता है।
योग सिखाता है जीवन जीने की कला
हर परंपरा किसी न किसी व्यक्ति से ही शुरू होती है और देखा जाए तो इस अर्थ में यह कहना ठीक हैग हिंगलत नहीं होगा की योग हिंदुओं की देन है मगर योगी कोई भी हो सकता है, ना सिर्फ मुस्लिम या ईसाई ही नहीं बल्कि नास्तिक भी। बता दें की योग आपके भीतर के असमंजस को समाप्त करता है और आपकी दृष्टि को साफ करता है।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यही हैं योग के सूत्र, जिसे यदि आपने अपने जीवन में उतार लिया तो यकीनन आप एक अलग ही एहसास पाएंगे। हमारा जीवन बहिर्मुखी ही न हो, हमारी इंद्रियां भीतर के प्रति भी उतनी ही सजग हों, हम एक साथ ही संसारी भी हों और संन्यासी भी,यही योग है।
योग का उद्देश्य और लाभ
योग करने से वजन नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है। इसके लिए सूर्य नमस्कार और कपालभाति जैसे प्रणायाम उपयोगी होते हैं। आपको बताना चाहेंगे की योग केवल रोगियों के लिए नहीं बल्कि स्वस्थ लोगों के लिए भी है।
कई तरह के व्यायामों के लाभ आपको प्राणायाम से भी मिल जाता हैं। हालांकि योग में कुल 84 प्राणायाम प्रमुख माने गए हैं मगर मुख्य रूप से अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभाति, उद्गीत, नाड़ीशोधन, भ्रामरी, बाह्य और प्रणव प्राणायाम का महत्व सबसे ज्यादा माना गया है।
योग हमारे अंतःकरण को शुद्ध करता है, जिससे अदृश्य शक्तियों का सहयोग मिलता है और इसके कारण ही योगियों का व्यक्तित्व चमत्कारी प्रतीत होता है। इसलिए, जो योगी है, वही संसार को सुसंस्कृत बनाने, श्रेष्ठ बनाने में कुछ अवदान कर सकता है।