Solar Eclipse 2019: सूर्यग्रहण के दौरान कर लिया ये काम तो हर तरफ़ गूंजेगा आपका ही नाम
कुछ लोगों के लिए साल 2019 भले ही बहुत अच्छा गया हो, लेकिन कही ना कही कुछ आदतें और कुछ चीज़ें हम हर साल अपने अंदर ज़रुर महसूस करते है जिन्हें हम अगले साल बदलना चाहते है| वहीँ कुछ लोग ऐसे भी होते है जिनका साल काफी परेशानियों में बिता होता है, और वे सभी बीती बातों को छोड़कर अपना नया साल एक नयी जिंदगी की तरह शुरू करने की सोचती है| सीधे शब्दों में कहे तो हर कोई अपनी जिंदगी का कुछ ना कुछ बदलने के लिए नए साल का बहुत बेसब्री से इंतजार करता है| साल 2019 को खत्म होने में बस अब कुछ दिन ही बाकी रह गए है|
आज हम मुख्य रूप से बात करने वाले है साल के अंत में आने वाली 26 दिसंबर की तारीख के बारे में| 26 दिसंबर को साल का अंतिम सूर्य ग्रहण है| कहते है कि सृष्टि के सृजन में सूर्य भगवान का काफी अधिक महत्व है उसी प्रकार आपकी जिंदगी में भी भगवान सूर्य काफी ज्यादा महत्व रखते है| ज्योतिशास्त्र के अनुसार, इस बार सूर्य ग्रहण भारत के केरल में देखा जाने वाला है|
अगर ज्योतिशास्त्र की माने, तो इस दिन भगवान सूर्य की चालीसा का पाठ 3 बार करने से आपके सभी दुःख दर्द दूर हो जाते है| अगर आप साल 2020 की अच्छी शुरुआत करना चाहते है तो साल का यह अंतिम ग्रहण आपके लिए बहुत ज्यादा शुभ हो सकता है| सूर्य चालीसा के लिए नीचे देखे –
सूर्यग्रहण के दौरान करें भगवान सूर्य की चालीसा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्तालैंड अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग|
चौपाई||
जय सविता जय जयति दिवाकर | सहस्त्रांशु! सप्तांश तिमिरहर||
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर। सविता हंस! सुनूर विभाकर।
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मारतण्ड हरिरूप विरोचन||
अम्बरमणि! खग! राव कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते||
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि||
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर||
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी||
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लीन होते||
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मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर||
पूषा रवि आदित्य नाम ले। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै||
द्वादस नाम प्रेम सों गावँ। मस्तक बारह बार नवावै||
चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै||
नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह||
सैवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई||
बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते||
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेही छन||
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतू है||
अर्क शीश को रक्षा करते|| रवि ललाट पर नित्य बिहरते||
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत||
भानु नासिका वास करहु नित। भास्कर करत सदा मुख कौ हित||
ओंठ बने रहे पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे||
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्मतेजस: काँधे लोभा||
पुशां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर||
यूगल हाथ पर रक्षा कारण। भानुमान उरसर्म सउश्नकर||
बसट नाभि आदित्य मनोहर| कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर||
जंघा गोपति बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा||
विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी||
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे||
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असजोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुँ तेहि नाहीं||
दरिद्र कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापे। योजन याको मन मंह जापे||
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से खुशी भरता||
ग्रह गण ग्रसी न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही||
मंद सदृश सुतजग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके||
धन्य-धन्य तुम दिनमणि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा||
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों||
परम धन्य सों नर तनधारी। प्रसन्न जेहि तम हारी||
अरुण माघ महँ सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन||
भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इंद्र आषाड़ रवि गावै||
यम भादों आश्विन हिमरेता। कार्तिक होत दिवाकर नेता||
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रवि हैं मलमासहीं||
||दोहा||
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य||
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होहिं सदा कृतकृत्य||