अगले 15 दिनों तक हर रोज शाम को इस जगह जला दें 1 दीया, दुनिया की कोई ताकत आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी
24 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहा है और यह 9 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद नवरात्र शुरू हो जाएंगे। श्राद्धपक्ष में पितरों की प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय करने की परंपरा है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन शाम तक पितृ पृथ्वी पर रहते हैं और शाम होने पर पितृ अपने लोक लौट जाते हैं।इस दिन का जो लोग लाभ नहीं उठाते हैं उन्हें पूरे साल तक पितरों की नाराजगी के कारण मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता सकता है। पितृपक्ष में उन सभी मृतकों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो या जिनकी मृत्यु की तिथि मालूम ना हो।
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इस दिन पितर अपने परिजन के घर के दरवाजे पर बैठे रहते हैं। जो भी व्यक्ति इन्हें अन्न-जल प्रदान करते है पितर उनसे प्रसन्न होकर खुशी-खुशी आशीर्वाद देकर अपने लोक लौट जाते हैं। पितृपक्ष में पन्द्रह दिन की समयावधि होती है| जिसमें हिन्दु धर्म को मानने वाले लोग अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं। श्राद्ध में तिल, चावल, जौ इत्यादि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसके साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को ही है। श्राद्ध में तिल और कुशा का भी सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी के रूप में अर्पित किया जाना चाहिए।
श्राद्ध करने का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी दिया गया हैं| शास्त्रों के मुताबिक ऐसी मान्यता हैं कि भोजन का प्रथम भाग गाय के लिए दूसरा भाग कुत्ते के लिए और तीसरा भाग कौवे के लिए निकालना चाहिए| पितृपक्ष में कोवे तथा कुत्ते को भोजन जरूर देना चाहिए| कौए को पितरों का रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए पितर कौए का रूप धारण कर दोपहर के समय अपने घर आते हैं। इन सब के अलावा यदि आप इन 15 दिनों तक शाम के समय इन पाँच जगहों पर दीप जलाने से आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता हैं|
इसके लिए आप अपने घर के ऐसे घर में जहां पितरों की तस्वीर लगी हो वह दक्षिण दिशा के तरफ मुंह कर धूप या दीप जलाए| दूसरा दीप आपको पीपल के नीचे जलाना हैं और पीपल के वृक्ष का 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए| इन 15 दिनों में तीसरा दीप गौशाला में जलाना चाहिए| इससे आपके ऊपर से पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी| अब छोटा दीप शिवलिंग के पास दीप जलाना हैं और अपने पितृ से क्षमा मांगे| इसके साथ ही पांचवा दीपक बबूल के वृक्ष के पास जलाए| यदि आप ऐसा करते हैं तो आपके ऊपर से पितृ दोष के साथ कालसर्प दोष और आने वाली सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती हैं|