जानें आखिर बच्चों के लिए कितने खतरनाक साबित हो रहे हैं इतने ज्यादा नंबर, आगे बढ़ना है तो अंधी दौड़ में न भागें
29 मई 2018 दिन मंगलवार को सीबीएससी के 10वीं बोर्ड के रिजल्ट आ गए हैं। इसमें से 1,31,493 स्टूडेंट्स को 90% से ज्यादा तो 27,476 स्टूडेंट्स को 95% से ज्यादा नंबर आए हैं। वहीं पर रिजल्ट आने के तुरंत बाद उम्मीद से कम नंबर आने पर तीन बच्चों ने सुसाइड कर लिया। रिजल्ट आने के बाद इस तरह की घटनाएँ होती हैं|
सवाल उठता हैं की आखिर सीबीएसई बोर्ड के एग्जाम में स्टूडेंट्स को इतने नंबर क्यों मिल रहे हैं? नंबरों की इस भागम-भाग वाली प्रतिस्पर्धा ने हमारे पूरे शिक्षा नीति पर सवाल खड़े कर दिए है। इस सवाल को लेकर सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली, एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर व शिक्षाविद् जेएस राजपूत, सीबीएसई में काउंसलर एंड साइकोलॉजिस्ट डॉ. शिखा रस्तोगी और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े अन्य जानकार लोगों और टीचर्स ने इस बात पर क्या कहा आइए जानते हैं…
नंबर्स की बाढ़ से बढ़ेंगी ये 3 प्रॉब्लम
(1) अनावश्यक प्रेशर बढ़ेगा
सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली कहते हैं कि नंबरों की यह दौड़ चिंताजनक है। बच्चों पर अच्छे नंबर के लिए जोर दिया जा रहा है। इससे ना सिर्फ केवल बच्चों और पैरेंट्स पर प्रेशर बढ़ रहा हैं, बल्कि जिन बच्चों के ज्यादा नंबर नहीं आ रहें हैं या 70-75 प्रतिशत नंबर लाने वाले बच्चे अपने फ्यूचर को लेकर काफी चिंतित हो रहें हैं|
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(2) बढ़ेगा फ्रस्टेशन
कम नंबर्स लाने वाले बच्चे तो फ्रस्टेट हो ही रहें हैं बल्कि इसके अलावा जिन बच्चो के अच्छे नंबर भी आ रहें हैं वो भी आजकल फ्रस्टेट हो रहें हैं| जिन बच्चों के अधिक नंबर आ रहें हैं, उन्हें भी भविष्य में परेशानी हो सकती है। अब उनसे हमेशा बेहतर परफॉर्म करने की उम्मीद की जाती हैं। अगर मानलो की वे फ्यूचर में अच्छा परफॉर्म नहीं करते हैं तो उनमें और ज्यादा फ्रस्टेशन आ जाएगा। मनोवैज्ञानिक रूप से ऐसे बच्चे ज्यादा परेशान होंगे।
(3) इमेजिनेशन के लिए जगह ही नहीं होगी
सीबीएसई की वैल्यूएशन की मौजूदा पूरी पद्धति ही ऑब्जेक्टिव टाइप की है। सीबीएसई के इस व्यवस्था में इमेजिनेशन और सोच-विचार के लिए जगह ही नहीं बच रही हैं। अर्थात रटने और अच्छे नंबर लाने से मतलब हैं उन्हें सोचने-विचारने का कोई मौका नहीं दिया जा रहे हैं जिससे की बिल्कुल टाइप्ड टैलेंट निकलकर आ रहा हैं जिसके पास इनोवेशन करने के लिए कुछ नहीं रहेगा।
तो ये हैं इसके 3 सॉल्यूशन :
(1) विशेषज्ञो का मानना हैं कि नंबर्स की इस स्फीति को कंट्रोल करना चाहिए, क्योंकि यह भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। बल्कि जिनके अच्छे नंबर्स नहीं आ रहें हैं, उन्हें अच्छी काउंसिलिंग करके बताना चाहिए कि कम नंबर्स के बावजूद भी वे कैसे मीनिंगफुल लाइफ जी सकते हैं। अर्थात नंबर कम आने से लाइफ खत्म नहीं होती बल्कि उनके लिए भी कई रास्ते हैं जिसपर पर चलकर वो कामयाबी पा सकते हैं|
(2) विशेषज्ञो कह रहें हैं कि हमें ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिसमें टैलेंट का पैमाना केवल नंबर नहीं हो। बल्कि बच्चों की प्रतिभा को सही ढंग से आंकने के लिए हमें एक अच्छी व्यवस्था बनानी होगी। जिससे बच्चे ज्यादा नंबर लाने की मानसिकता से दूर हो और इस बात को समझे की ज्यादा नंबर लाना ही काफी नहीं बल्कि टैलेंट भी जरूरी होना चाहिए|
(3) साइकोलॉजिस्ट डॉ. शिखा रस्तोगी कहती हैं कि पैरेंट्स की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे नंबर्स को लेकर सख्त ना हो बल्कि बच्चों को केवल अच्छी स्टडी करने को मोटिवेट करना चाहिए। बच्चों में यह विश्वास जगाना चाहिए कि कम नंबर्स आने के बावजूद भी वे उनके साथ हैं और हमेशा साथ रहेंगे, क्योंकि जिंदगी नंबर्स से नहीं चलती बल्कि टैलेंट पर चलती हैं| यदि टैलेंट है तो कामयाबी आपके कदम चूमेगी|