बायोग्राफी ऑफ सदगुरु | Biography of Sadhguru in Hindi
सदगुरु आज के समय में ना केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में प्रसिद्ध हैं, जो इनके बारें में नहीं जानता होगा तो वो यही सोचते होंगें कि ये कोई महान पंडित या कोई ज्ञानी बाबा होंगे। लेकिन ये कोई धर्म की बात करने वाले बाबा नहीं हैं बल्कि ये तो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें अपनी आत्मा का अनुभव हो चुका हैं और अब वो लोगों के साथ आध्यात्मिक ज्ञान बांटते हैं। आज हम आपको इन्हीं आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव यानी सदगुरु (Biography of Sadhguru) के जीवन के बारें में बताने जा रहें हैं
Biography of Sadhguru : सदगुरू का शुरुआती जीवन
इनका वास्तविक नाम जग्गी वासुदेव हैं, कर्नाटक राज्य के मैसूर में 5 सितंबर 1957 को उनका जन्म हुआ था, उनके पिता चिकित्सक थे। बचपन से ही सदगुरू को प्रकृति और वन्य-जीवन से काफी प्रेम था इसी वजह से वो अक्सर घर से निकल कर घने जंगलों में गुम हो जाते थे, उनके अनुसार वो जंगल में बड़े-बड़े पेड़ पर चढ़कर उनकी ऊंची डाल पर बैठ जाते थे, इससे वो प्राकृतिक हवा का लुत्फ उठाते थे और फिर वो ध्यान में रम जाते थे। इनके अलावा उन्हें सांपो में भी बड़ी रुचि थी, इसी वजह से वो कई बार जंगल से घर जाते समय अपनी झोली में बहुत से सांप भर कर ले जाते थे, इससे ये सिद्ध होता हैं कि उन्हें सांपो को अपने काबू में करने की कला भी पता थी।
11 वर्ष की आयु में उन्होंने योग करना शुरु कर दिया और इसके पीछे उनके योग शिक्षक श्री राघवेंद्र राव का हाथ था। उनके गुरु ने उनको धीरे-धीरे योग के सभी आसान सीखा दिए थे और उसके बाद सदगुरू ने उन सभी आसन का अभ्यास करना शुरु कर दिया था, उन्होंने अंग्रेजी भाषा में स्नातक की डिग्री मैसूर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी।
सदगुरू के कदम आध्यात्मिक जीवन की तरफ
वर्ष 1982 में वो जब महज 15 वर्ष के थे तो उनके साथ एक विचित्र घटना घटित हुई थी जिसके बाद उनका जीवन आध्यात्म की तरफ अग्रसर हो गया था और उन्हें आत्म ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। एक समय की बात है जब दिन के समय वो चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़कर एक ऊंची चट्टान पर जाकर बैठ गए, उनकी आंखें उस समय खुली हुई थी, तभी एकाएक उन्हें अपने शरीर में कुछ अजीब महसूस हुआ और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा कि वो खुद अपने शरीर में नहीं हैं अपितु वो अपने आप को हर तरफ महसूस करने लगे जैसेकि जंगल के पेड़ों में, धरती में, चट्टानों में इत्यादि।
ये अनुभव केवल एक बार नहीं बल्कि उन्हें अक्सर ऐसा अनुभव होने लगा और हर बार उन्हें ऐसा ही महसूस होता। इस घटना ने उनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया और फिर उन्होंने अपने इस अनुभव को अन्य लोगों में बाटने का निर्णय किया। उनके इस निर्णय के कारण ही उनके द्वारा ईशा फाउंडेशन की स्थापना की गई।
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Biography of Sadhguru : सदगुरू और योग
इसके अलावा 1983 में उनके द्वारा मैसूर में योग कक्षा की शुरुआत की गई। शुरू में तो केवल 7 छात्रों को योग सिखाने की शुरुआत की और धीरे-धीरे उनके द्वारा सिखाये जाने वाले योग की लोकप्रियता बढ़ने लगी और मैसूर के अलावा वो कर्नाटक के अन्य क्षेत्रों और हैदराबाद में भी योग की शिक्षा देने लगे।
उन्होंने योग सिखाने के बदले किसी भी तरह की धन राशि को अपने लिए स्वीकार करने से मना कर दिया था और वो उनसे मिलने वाली राशि को दान दे दिया करते थे। वर्ष 1993 में ईशा योग केंद्र की स्थापना की गई और ये ईशा फाउंडेशन के अंतर्गत आता है। ईशा योग केंद्र वेलिंगिरी पर्वत से घिरे हुए हरी-भरी भूमि पर 150 एकड़ में स्थित हैं।
सदगुरू का ईशा फाउंडेशन
जग्गी वासुदेव यानी सदगुरू ने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की हैं जिसका मुख्य उद्देश्य मानव सेवा करना हैं और वो भी बिना किसी लाभ के मकसद से। इस फाउंडेशन के द्वारा लोगों को शारीरिक, मानसिक और आंतरिक कुशलता सिखाई जाती हैं, इस फाउंडेशन को 250000 से भी ज्यादा व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता हैं इसका मुख्यालय कोयम्बटूर में स्थित हैं। इस फाउंडेशन का एक और मुख्य कार्य तमिलनाडु में अधिक से अधिक पेड़ रोपड़ करना हैं उनकी इस परियोजना को ग्रीन हैंड्स परियोजना का नाम दिया गया हैं।
उनके फाउंडेशन द्वारा 17 अक्टूबर 2006 में तमिलनाडु राज्य के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख से ज्यादा पेड़ लगाने में कारण उनका नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। उनको उनके द्वारा किए गए पर्यावरण के लिए किए गए बहुत से कार्यों के लिए उन्हें इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से नवाजा गया और 2017 में उन्हें आध्यात्मिक के क्षेत्र में किए गए कार्यो की वजह से पद्मविभूषण भी दिया गया है।