9 सितंबर को है कुशग्रहणी अमावस्या, ऐसे करेंगे पूजा तो मिलेगा सभी कष्टों से मिलेगा छुटकारा
भाद्रप्रद कृष्ण अमावस्या 9 सितंबर को पड़ने वाली हैं| इस अमावस्या को कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहते हैं| सनातन धर्म को मानने वाले यह बात अच्छे से जानते हैं की बिना कुशा के की गयी सारी पूजा निष्फल मनी जाती हैं| पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:। कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥ पूजा के समय विद्वान पंडित लोगों को अनामिका उंगली में कुश की बनी अंगूठी को पहनाते हैं। व्यक्ति के बायें हाथ में तीन कुश और दायें हाथ में दो कुशों की बनी हुई पवित्री- पैंती इस मंत्र के साथ पहनना चाहिए- ओम पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि:। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम्॥
यह भी पढ़ें : शुरू हो गया है भाद्रपद का महिना, भूलकर भी न करें ये 5 काम
पंडित या पुरोहित हमेशा कुशा से गंगा जल को सभी लोगों के ऊपर छिड़कते हैं| पूरे साल पुजा के लिए इस दिन ही कुश एकत्रित किया जाता हैं, कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:। गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सवल्वजा:॥ दस प्रकार के कुश होते हैं और जो भी मिल जाए उसी को ग्रहण कर लेना चाहिए| ऐसा माना जाता हैं कि जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो, सात पत्ती हों, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वही कुश देव और पितृ दोनों कार्यो में उपयोग करने लायक होता है।
जिस जगह कुश उपलब्ध हो उस जगह पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाना चाहिए और दाहिने हाथ से इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज। नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव॥ हूं फट्। कुश को उखाड़ना चाहिए और इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की कुश की जितनी जरूरत हो उतनी ही उखाड़नी चाहिए|
जिस व्यक्ति की राशि वृष और कन्या है या फिर उन पर शनि की ढैया और जिन लोगों की वृश्चिक, धनु और मकर राशि है और उनके ऊपर शनि की साढ़ेसाती चल रही हैं। इसके साथ ही जिनके ऊपर पितृ दोष के कारण संतान ना होने का भय लगा हो उन्हें इस अमावस्या को पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा जरूर करना चाहिए।
जिन लोगों को शनि, राहु और केतु परेशान कर रहे हैं, उन लोगों को हर अमावस्या पर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने पितरों को भोग और तर्पण अर्पित करना चाहिए। कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थस्नान, जप और व्रत इत्यादि जो भी संभव हो, जरूर करना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करने के बाद ही नारायण और शिव या फिर अपने इष्टदेव की पुजा विधि-विधान पूर्वक करनी चाहिए।