अब Fail शब्द का इस्तेमाल नहीं करेगी CBSE, जानिए क्या है वजह
अभी हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल ने बारहवीं और फिर दसवीं कक्षा के नतीजे घोषित किए हैं. हर साल की तरह इस साल भी लोगों में यह चिंता है कि कहीं अनुत्तीर्ण छात्र बहुत ज्यादा निराश न हो जाएं. इससे बचने की दिशा में सीबीएसई ने एक अहम कदम उठाया है. अब बोर्ड की मार्कशीट में फेल शब्द दिखाई नहीं देगा. अब वह फेल की जगह दूसरा बेहतर शब्द उपयोग में ला रहा है.
सीबीएसई ने खुद किया ऐलान
जब सीबीएसई ने बारहवीं कक्षा के नतीजों का ऐलान किया तो उसने इनके साथ ही नतीजों में फेल लिखना बंद करने की नीति अपना ली है. बोर्ड ने फेल शब्द का उपयोग मार्कशीट और अन्य दस्तावेजों में बंद करने की घोषणा करते हुए कहा कि अब उसने तय किया है कि वह फेल शब्द की जगह ‘असेंशियल रिपीट’ शब्द का उपयोग करेगी. देश के कई शिक्षा बोर्ड, यूनिवर्सिटी और शैक्षणिक संस्थान लंबे समय से किसी परीक्षा या विषय में पास होने के जरूरी अंक हासिल न करने पर मार्कशीट में फेल शब्द का प्रयोग कर रहे हैं.
क्या फर्क पड़ेगा नतीजे पर
वैसे फेल शब्द की जगह असेंशियल रीपीट शब्द के उपयोग से छात्र की मार्कशीट में परिणाम पर कोई बदलाव नहीं आएगा. अगर कोई छात्र उत्तीर्ण या पास नहीं हो सका है तो उसे वह परीक्षा फिर से देनी होगी. वहीं साल रीपीट करने की शर्तों में भी कोई बदलाव नहीं किया है. बोर्ड का मानना है कि फेल शब्द की जगह इस नए शब्द का उपयोग छात्रों पर नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव नहीं डालेगा.
इसे हटाना कितना अच्छा कदम है?
कई शिक्षकों और विशेषज्ञों का मानना है कि फेल शब्द हतोत्साहित करने वाला है और वह एक महत्वहीनता का भाव लाता है. वह हमेशा के लिए एक ठप्पा लगने जैसा लगता है. इस कदम का कई लोगों ने स्वागत किया है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार एक सेकेंड्री स्कूल की प्रिंसपल का कहना है कि जब अब फेल या फेलियर शब्द का उपयोग करते हैं, आप उसके प्रयासों को बेकार साबित करने की कोशिश करते हैं. चाहे नतीजा कुछ भी कोई भी छात्र जीवन में फेल नहीं होता.
बहुत बुरा असर होता है इस शब्द का
उन्होंने कहा, “जब कोई छात्र अपनी मार्कशीट में फेल या F अक्षर देखता है तो इसका उप पर गहरा असर होता है. उसे लगता है कि वह अब कोशिश नहीं कर सकता और कभी सफल नहीं हो सकता. जब हम काउंसलिंग करते हैं तब हमें पता चला है कि इस शब्द का बोझ क्या होता है. क्या होता है जब कोई उन्हें फेलियर कहता है. परीक्षा में फेल होना जीवन में फेल होना नहीं है. लेकिन जब आप यह कागज पर लिख कर उन्हें देते हैं तो यह उनके साथ जीवनभर रहता है.”
क्या वाकई फर्क पड़ेगा इससे
बोर्ड के इस कदम से उम्मीद की जा रही है कि अब छात्रों पर दबाव घटेगा और उससे हो सकता है कि नतीजों से निराश होकर आत्महत्या करने वाले छात्रों कीं की संख्या में कमी आए और उनपर मातापिता की ओर से दबाव भी कम हो. वैसे तो कम्पार्टमेट या सप्लीमेंट्री, कक्षा को रीपीट करने के नियमों में कोई बदलाव तो नहीं हुआ है. लेकिन फिर भी कई विशेषज्ञों का मानना है कि असेंशियल रीपीट शब्द सकारात्मकता दर्शाता है और छात्रों को दोबारा सफल होने के प्रेरित करने वाला हो सकता है. यह छात्रों का नई शुरुआत करने के लिए प्रेरित करेगा और वे इसे एक नए अनुभव की तरह महसूस कर सकेंगे.
यह देखना होगा इस नए बदलाव को अन्य राज्यों के बोर्ड और विभिन्न यूनिवर्सिटी अपनाते हैं या नहीं. उम्मीद की जा रही है कि इस सभी जगह अपनाया जाएगा. इसके अलावा इस बदलाव का व्यापकअसर दिखाई देने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन फिर कई लोगों को उम्मीद है कि इससे तात्कालिक प्रभाव भी दिखाई देंगे.