केरल की पहली पसंद बनी लुंगी का है ये इतिहास, राजनीतिकरण से लेकर सांस्कृतिक महत्व
‘लुंगी’ आमतौर पर गाँव या ग्रामीण क्षेत्रों में पहना जाने वाला एक साधारण सा परिधान है जो करीब 2 मीटर लम्बा कपड़ा होता है। लुंगी कई तरह के पैटर्न में आता है जैसे फ़्लोरल प्रिंट या फिर रंग-बिरंगे चेक पैटर्न, आदि। हालाँकि आपको यह भी पता होना चाहिए कि यह एक ऐसा कपड़ा है जिसे दक्षिण भारत के लोग बहुत ही शान से पहनते हैं ख़ासतौर से पुरुष वर्ग के लोग। आज हम आपको केरल की लुंगी के बारे में कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं जिसे जानकार आप भी काफी रोमांचित हो उठेंगे।
केरल की लुंगी और इसका सांस्कृतिक महत्त्व
हालाँकि केरल राज्य में इसी लुंगी या फिर कल्ली मुंडू (लुंगी का स्थानीय भाषा में नाम) का एक विशेष महत्त्व है। आपको पता होना चाहिए कि केरल के अलग-अलग समुदाय में फैली ये लुंगी-प्रथा कल भी और आज भी वहां की सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखि जाती है। यह सुनकर आपको थोड़ी हैरानी जरुर हो सकती है कि केरल में लुंगी-कल्ली मुंडू सिर्फ़ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी पहनती हैं।
तथ्यों के अनुसार देखा जाये तो केरल में लुंगी-कल्ली मुंडू को आमतौर पर श्रमिक वर्ग के लोगों द्वारा पहना जाता है जो इस बात को दर्शाता हा कि यह इस खास वर्ग के लोगों प्रतिनिधित्व करने वाली पोशाक है। ऑटो चालकों, सड़कों पर सामान बेच रहे विक्रेताओं से लेकर मछुआरों तक ये ‘लुंगी’ पहनते हैं। लेकिन मजेदार बात तो ये है कि बदलते वक़्त के साथ-साथ ये लुंगी हमारे आज के मॉडर्न युग में जी रहे युवाओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
लुंगी का चलन केरल के अलग-अलग समुदायों में हैं
यह कहना कहीं से भी गलत नहीं हगा कि लुंगी पुरुषों का वस्त्र है मगर बात जब केरल की आती है तो यहाँ पर अलग अलग समुदायों में लुंगी को अभी भी महिलाओं का पसंदीदा व आरामदायक पहनावा बताया जाता है। अक्सर ही आपने फिल्म के सीन या तस्वीरों या गाने आदि में देखा ही होगा कि महिलाएं भी लुंगी पहन घर-घर जाकर मछली बेच रही है। केरल, जो दक्षिण भारत का काफी महत्वपूर्ण राज्य है और यहाँ पर में ईसाई समुदाय में महिलाओं की पुरानी पीढ़ी मौजूद है जो आज की तारीख में भी लुंगी-कल्ली मुंडू पहनती है।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, मुस्लिम समुदाय में भी कई महिलाएं अपने घरों में लुंगी पहनती हैं। हाँ यहाँ एक बात थोड़ी अलग हो जाती है कि मुस्लिम समुदाय में अक्सर लुंगी-कल्ली मुंडू को दाईं से बाईं ओर पहना जाता है, जबकि अन्य लोग आमतौर पर लुंगी को बाएं से दाएं की तरफ लपेटते हैं। लुंगी-कल्ली मुंडू को एक ब्रांड नाम देने वाली केरल की पहली कुछ फ़र्मों में से एक KITEX गारमेंट्स के अधिकारी का कहना है कि तत्काल की तुलना में पहले, राज्य में ज़्यादातर महिलाओं का पहनावा अकसर लुंगी ही हुआ करता था।
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लुंगी का राजनीतिकरण
सामान्य तौर पर देखा जाये तो लुंगी-कल्ली मुंडू हमेशा से श्रमिक वर्ग का ही पहनावा माना जाता रहा है। जब जब समाज द्वारा लुंगी-कल्ली मुंडू को किसी एक समूह विशेष का पहनावा बताया गया है तब तब ये विवादों का हिस्सा रही है। इस तरह के विवाद जो इस समाज के दोहरे चेहरे को दिखाते हैं।
अभी हाल ही में पीछे वर्ष की घटना है जब कोझीकोड में, एक व्यक्ति को शहर के एक होटल में प्रवेश करने से मना कर दिया गया था, वजह सामने आई तो सर चकरा गया। असल में उस व्यक्ति को होटल में प्रवेश इसलिए नहीं मिला क्योंकि उसने लुंगी-कल्ली मुंडू पहन रखी थी। जिसके बाद यह घटना एक ‘लुंगी-विरोध’ में बदल गई, जिसमें कई लोग सड़कों पर उतरे और अपनी पसंद अनुसार कपड़े पहनने के अधिकार पर ज़ोर भी दिया। इस घटना व्यापक और जबरदस्त असर हुआ जिसके बाद कोझिकोड निगम ने एक आदेश जारी किया जिसमें होटल्स को पारंपरिक पहनावे का सम्मान करने के लिए कहा गया।
इसके अलावा भी लुंगी-कल्ली मुंडू को लेकर कई अन्य ऐसे ही उदाहरण हैं जिनमे से एक वो हैं जब लुंगी-कल्ली मुंडू पहने लोगों को राज्य विधानसभा में आगंतुकों की गैलरी में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था क्योंकि उनके हिसाब से उन्होंने ‘अनौपचारिक’ कपड़े पहने रखे थे जो राज्य विधानसभा के मानक पर खरे नहीं थे।
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