Jadav Molai Payeng: Forest Man of India जिन्हें मेक्सिको सरकार ने बुलाया अपने देश
Forest Man of India | जब भी पर्यावरण दिवस आता है तो हम एक छोटा सा पौधा लगाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते या जल दिवस आता है तो दूसरों को जल बचाने का ज्ञान देने लगते है लेकिन ऐसा करने से ना तो हम पर्यावरण बचा सकते है और ना ही कुछ और कर सकते है। हमारें बीच कुछ ऐसे भी लोग होते है जो पर्यावरण की खातिर बिना किसी शोर-शराबे के पौधरोपण करते रहते है उन्हें इस बात की बिल्कुल भी चिंता नहीं होती कि उनके बारे में कोई जानता है या नहीं क्योंकि उन्हें बस प्रकृति के प्रति अपना फर्ज निभाना होता है।
आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने अभी तक अपनी जिंदगी में बेशुमार पेड़-पौधे लगाए है और उनकी इसी मेहनत से अब एक पूरा जंगल तैयार हो चुका है। हम बात कर रहे है असम निवासी पद्म श्री से सम्मानित विभूषित जादव पायेंग के बारे में जिन्हें Forest Man of India भी कहा जाता है और हाल में ही उन्हें मेक्सिको सरकार से बुलावा आया है कि उनके देश मे भी वो यही सब करें।
Forest Man of India: 4 दशक से कर रहे प्रकृति की सेवा
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जादव पायेंग अब तक अपने जीवन के कुल 40 साल पेड़-पौधे की देखभाल और सेवा में बिता चुके है, Forest Man of India ने ब्रह्मपुत्र नदी के द्विपीय इलाके जिसे अरुना सपोरी कहा जाता है उसमें खुद बिना किसी मदद के 1360 एकड़ में वीरान हो चुका जंगल खुद तैयार कर लिया है। अपनी इसी कार्य की वजह से उन्हें देश के द्वारा अति-विशिष्ट सम्मान पद्मश्री से भी नवाजा गया है, उनके द्वारा तैयार किये गए इस जंगल में हजारों की संख्या में पक्षी और जानवर रहने लगे है। इस जंगल को हरा भरा करने की शुरुआत जब वो 10वीं कक्षा में पड़ते थे यानी 1978 में की थी।
मन में आया जंगल बसाने का विचार
जादव पायेंग (Forest Man of India) के अनुसार पहले उनका परिवार ब्रह्मपुत्र नदी के उसी अरुना सपोरी इलाके में रहा करता था लेकिन वर्ष 1965 में उन लोगों ने वहां रहना छोड़ दिया परंतु जादव अपनी शिक्षा के लिए उसी इलाके में आते रहते थे। एक दिन जब वो स्कूल जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें बहुत से सांप मरे हुए दिखाई दिए जिसके बारे में जब उन्होंने गांव के लोगों से पता किया तो उन्हें पता चला कि इलाके में पेड़-पौधे ना होने की वजह से जब बाढ़ आई तो अधिकतर सांप पानी के बहाव के साथ बह गए थे।
ये देखकर जादव को बहुत ज्यादा दुख हुआ और उसी पल उनके मन मे विचार आया कि ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे के आसपास की जगहों पर पेड़-पौधे लगाने चाहिए क्योंकि वहां की भूमि धीरे-धीरे बंजर होती जा रही थी। तभी से उन्होंने अरुना सपोरी इलाके में वृक्षारोपण का काम करना शुरू कर दिया था और अभी तक जादव उस जंगल की देखभाल करते रहते है।
काफी देर बाद आई सरकार को उनकी याद
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भले ही 1978 जादव पायेंग ये काम 1978 से कर रहे हो पर सरकार को प्रकृति के लिए उनके योगदान के बारे में 2015 में ही पता चला, दरअसल जादव ने कभी भी अपने कार्य को करने के लिए ना तो सरकार की तरफ से किसी मदद की अपेक्षा की और ना ही किसी NGO की सहायता का इंतजार किया। उनके इस महान कार्य के लिए पहले उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के द्वारा 2012 में सम्मानित किया गया था।
देश की केंद्र सरकार द्वारा सर्वप्रथम 2015 में Forest Man of India जादव पायेंग की मेहनत को पहचाना गया और उनके इस कार्य के लिए 2015 में उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया गया और इसी के साथ पूरी दुनिया को ये संदेश भी दिया गया कि भारत के पास प्रकृति को बचा कर रखने वाला सबसे बेशकीमती खजाना है। उसके बाद उन्हें बहुत से देशों के द्वारा उनके देश में आमंत्रित किया गया, जबकि देश की बहुत सी बड़ी कंपनियों ने उन्हें नौकरी का भी ऑफर दिया जिसे जादव ने ये कहकर ठुकरा दिया कि जिस काम को करके उन्हें इतना बड़ा सम्मान मिला है उसे छोड़कर वो नौकरी करने लग जाए।
Forest Man of India को मिला मेक्सिको से बुलावा
नॉर्थ अमेरिका में बसे एक देश मेक्सिको के द्वारा Forest Man of India जादव पायेंग को उनके उनके देश में जाकर जो काम भारत में करते आये है उसे वहां करने के लिए बुलाया है। मेक्सिको सरकार का कहना है कि जादव उनके देश के लोगों को वृक्षारोपण के बारे में बताए और तरीकों के बारे में भी जानकारी प्रदान करें। इसके लिए वहां की एक गैर-सरकारी संगठन ने जादव के साथ अगले दस सालों में 8 लाख हेक्टेयर जमीन पर पेड़ लगाने के लिए करार किया गया है।
मेक्सिको की सरकार ने उन्हें 10 साल के लिए पर्मानेंट वीजा देने के अलावा, रहने-खाने की सुविधा, आने-जाने का किराया भी दिया है, जादव पायेंग हर साल में कम से कम तीन महीने मेक्सिको में ही बिताएंगे। अगले 10 सालों में वो उत्तरी अमेरिका के इस देश मेक्सिको को भी हरा-भरा बनाने के लिए इस वर्ष सिंतबर में मेक्सिको के लिए उड़ान भरेंगे।