Prithviraj Chauhan Biography | भारतीय इतिहास के वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
Prithviraj Chauhan Biography | भारतीय इतिहास में एक बहुत ही अविस्मरणीय और चर्चित नाम है पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही पिता की मृत्यु के पश्चात अजमेर और दिल्ली जैसे राज्य पर शासन किया। पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे। भारत के वीर पृथ्वीराज चौहान की वीरगाथा का अनुमान आप इस तरह से भी लगा सकते हैं कि वो सिर्फ आवाज सुनकर ही बिना देखे हुए दुश्मनों पर निशाना साध सकते थे। यही नहीं, पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी जैसी खूंखार और खतरनाक दुश्मन को ना केवल एक दो बार बल्कि 17 बार हराया था।
इतिहासकारों के अनुसार सबसे आखरी युद्ध में जयचंद का साथ मिल जाने के कारण मोहम्मद गोरी की सेना पृथ्वीराज की सेना पर हावी होने लगी थी और इस तरह से इस युद्ध में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया और उन्हें बंदी बना लिया था। हालाँकि कहा यह भी जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने अपने जीवन के आखिरी समय में मोहम्मद गौरी की हत्या कर दी और फिर बाद में अपने दोस्त चंद्रवरदाई के साथ अपनी जान दे दी।
Prithviraj Chauhan Biography | पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
- वास्तविक नाम पृथ्वीराज चौहान
- उपनाम भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा
- धर्म क्षत्रिय
व्यक्तिगत जीवन
- जन्मतिथि 1 जून 1163 (आंग्ल पंचांग के अनुसार)
- जन्मस्थान पाटण, गुजरात, भारत
- मृत्यु तिथि 11 मार्च 1192 (आंग्ल पंचांग के अनुसार)
- मृत्यु स्थल अजयमेरु (अजमेर), राजस्थान
- आयु (मृत्यु के समय) 28 वर्ष
- राष्ट्रीयता भारतीय
- गृहनगर सोरों शूकरक्षेत्र, उत्तर प्रदेश (वर्तमान में कासगंज, एटा) कुछ विद्वानों के अनुसार जिला राजापुर, बाँदा (वर्तमान में चित्रकूट)
- धर्म हिन्दू
- वंश चौहानवंश
- पिता सोमेश्वर
- माता कर्पूरदेवी
- भाई हरिराज (छोटा)
- बहन पृथा (छोटी)
Prithviraj Chauhan Biography | पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
ऐसा बताया जाता है कि, पृथ्वीराज के जन्म के बाद पिता राजा सोमेश्वर ने अपने पुत्र के भविष्यफल को जानने के लिए विद्वान् पंडितों को बुलाया। जहां पृथ्वीराज का भविष्यफल देखते हुए पंडितों ने उनका नाम “पृथ्वीराज” रखा।
पृथ्वीराज चौहान उत्तर भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में अजयमेरु (वर्तमान में अजमेर) और दिल्ली के शासक थे।
मात्र 5 वर्ष की आयु में, पृथ्वीराज ने अजयमेरु (वर्तमान में अजमेर) में विग्रहराज द्वारा स्थापित “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” से (वर्तमान में वो विद्यापीठ ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नामक एक ‘मस्जिद’ के नाम से जाना जाता है) से शिक्षा प्राप्त की।
इसी जगह से उन्होंने युद्धकला और शस्त्र विद्या की शिक्षा अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी।
पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे। चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे। चंदबरदाई बाद मे दिल्ली के शासक हुये और उन्होने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मे पुराने किले नाम से विद्यमान है।
वैसे तो पृथ्वीराज चौहान की 3 पत्नियाँ थीं लेकिन उनकी तीसरी पत्नी के साथ उनका प्रेम ना सिर्फ पूरे राजस्थान में बल्कि इतिहास में काफी मशहूर है। पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी राजस्थान के इतिहास मे अविस्मरणीय है। कहा जाता है कि दोनों ही एक दूसरे से बिना मिले केवल चित्र देखकर एक दूसरे के प्यार मे मोहित हो चुके थे। वही संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ ईर्ष्या भाव रखते थे, तो अपनी पुत्री का पृथ्वीराज चौहान से विवाह का विषय तो दूर दूर तक सोचने योग्य बात नहीं थी। जयचंद्र केवल पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का मौका ढूंढते रहते थे, यह मौका उन्हे अपनी पुत्री के स्व्यंवर मे मिला। राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्व्यंवर आयोजित किया। इसके लिए उन्होने पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर पूरे देशभर से राजाओ को आमत्रित किया। सिर्फ इतना ही नहीं, पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उन्होने स्व्यंवर मे पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रखी। परंतु इसी स्व्यंवर मे पृथ्वीराज ने संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण भरी महफिल मे किया और उन्हे भगाकर अपनी रियासत ले आए और दिल्ली आकार दोनों का पूरी विधि से विवाह संपन्न हुआ, इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और भी बढ़ गयी।
आपको यह जानकार हैरानी होगी कि युद्ध क्षेत्र में निपुण पृथ्वीराज छह भाषाओँ में भी निपुण थे, जैसे – संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा। इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था।
“पृथ्वीराज रासो” जो महान कवि चंदबरदाई की काव्य रचना हैं, में उल्लेख किया गया है कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने, अश्व व हाथी नियंत्रण विद्या में भी काफी निपुण थे।
पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय थी, जिसमे 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे। कहा जाता है कि उनकी सेना बहुत ही अच्छी तरह से संगठित थी, इसी कारण इस सेना के बूते उन्होने कई युध्द जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए।
पृथ्वीराज ने युद्धनीति के आधार पर दिग्विजय अभियान चलाया, जिसमें उन्होंने वर्ष 1177 में भादानक देशीय को, वर्ष 1182 में जेजाकभुक्ति शासक को और वर्ष 1183 में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया था।
जब पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी का प्रथम युध्द उस दौरान पृथ्वीराज की सेना ने अपने कमांडो खो दिए थे लेकिन पृथ्वीराज ने अपने युद्ध कौशल के बल पर गौरी के सैनकों के चक्के छुड़ा दिए और इस युध्द मे मुहम्मद गौरी भी अधमरे हो गए, परंतु उनके एक सैनिक ने उनकी हालत का अंदाजा लगते हुये, उन्हे घोड़े पर डालकर अपने महल ले गया और उनका उपचार कराया। इस तरह यह युध्द परिणामहीन रहा। यह युध्द सरहिंद किले के पास तराइन नामक स्थान पर हुआ, इसलिए इसे तराइन का युध्द भी कहते है।
बेटी के अपहरण और अपने अपमान में जल रहे राजा जयचंद हमेशा मो.गौरी को पृथ्वीराज के खिलाफ भड़काता रहता था, 2 वर्ष बाद सन 1192 मे पुनः पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया। यह युध्द भी तराई के मैदान मे हुआ. इस युध्द के समय जब पृथ्वीराज के मित्र चंदबरदाई ने अन्य राजपूत राजाओ से मदत मांगी, तो संयोगिता के स्व्यंबर मे हुई घटना के कारण उन्होने ने भी उनकी मदत से इंकार कर दिया। ऐसे मे पृथ्वीराज चौहान अकेले पढ़ गए और उन्होने अपने 3 लाख सैनिको के द्वारा गौरी की सेना का सामना किया। चूँकि गौरी की सेना मे अच्छे घुड़ सवार थे, उन्होने पृथ्वीराज की सेना को चारो ओर से घेर लिया। ऐसे मे वे न आगे पढ़ पाये न ही पीछे हट पाये और जयचंद्र के गद्दार सैनिको ने राजपूत सैनिको का ही संहार किया और पृथ्वीराज की हार हुई। युध्द के बाद पृथ्वीराज और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया।
Prithviraj Chauhan Biography | पृथ्वीराज की मृत्यु
इतिहासकारों के अनुसार कहा जाता है कि गौरी से युध्द के पश्चात पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य ले जाया गया। वहां उन्हे यतनाए दी गयी तथा पृथ्वीराज की आखो को लोहे के गर्म सरियो द्वारा जलाया गया, इससे वे अपनी आखो की रोशनी खो बैठे। जब पृथ्वीराज से उनकी मृत्यु के पहले आखरी इच्छा पूछी गयी, तो उन्होने भरी सभा मे अपने मित्र चंदबरदाई के शब्दो पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की इच्छा प्रकट की और इसी प्रकार चंदबरदई द्वारा बोले गए दोहे का प्रयोग करते हुये उन्होने गौरी की हत्या भरी सभा मे कर दी। इसके पश्चात अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त कर दी और जब संयोगिता ने यह खबर सुनी, तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया। हालाँकि गौरी की ह्त्या और स्वयं पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु पर अलग अलग इतिहासकारों का अलग अलग मत है। उनका अंतिम संस्कार अजयमेरु (अजमेर) में ही उनके छोटे भाई हरिराज के हाथों हुआ।