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Biography of Sathya Sai Baba in Hindi | बायोग्राफी ऑफ श्री सत्य साई बाबा

शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने श्री सत्य साई का नाम नहीं सुना होगा, उनका नाम केवल भारत मे नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। आज के समय में दुनिया के लगभग 148 देशों में इनके सत्य साई केंद्र स्थापित हैं, भारत में भी इनके इस संगठन की लगभग हर शहर और हर गांव में पहुंच हैं। इनके सभी संगठनों में बाबा के अनुयायी बाबा के द्वारा दिखाए गए आध्यात्मिक राह पर चल कर आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहें हैं, आखिर कौन थे ये सत्य साई और कैसे पड़ा इनका नाम सत्य साई, इसके बारें में हम आज के इस लेख में जानेंगे

सत्य साई का जन्म और शुरुआती जीवन

Biography of Sathya Sai Baba

इनका असली नाम सत्यनारायण राजू था, इनका जन्म आंध्र प्रदेश के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 23 नवंबर 1926 को हुआ था, ये बचपन से ही बुद्धिमान होने के साथ-साथ दयालु प्रवत्ति के थे। इन सबके अलावा सत्यनारायण राजू को संगीत, नृत्य, गायन में भी बहुत रुचि थी, दरअसल इनका नाम सत्यनारायण राजू बनने के पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी हैं।

सत्य साई बाबा का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद तृतीय तिथि में सोमवार के दिन ब्रह्म मुहुर्त में हुआ था, कहा जाता हैं कि इनका जन्म इनकी मां के द्वारा सत्यनारायण भगवान की पूजा का प्रसाद खाने के बाद हुआ था, इसी वजह से इनका नाम सत्यनारायण पड़ा। जब इनका जन्म हुआ था तो उस समय घर में रखे सभी प्रकार के वाद्ययंत्र अपने आप ही बजने लगें और कही से एक रहस्यमयी नाग इनके ऊपर अपने फन से छाया करता हुआ पाया गया था।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मात्र 8 वर्ष की छोटी आयु से ही इन्होंने ने बहुत ही सुंदर भजन लिखने शुरू कर दिए थे, सत्य बाबा की शुरुआती शिक्षा उनके गांव पुटुपूर्ति के ही प्राथमिक स्कूल से हुई।

सत्यनारायण राजू से सत्य साई बाबा बनने का सफर

Biography of Sathya Sai Baba

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तीसरी कक्षा तक गांव के स्कूल में पड़ने के बाद वो बुक्कापटनम चले गए जहां उन्होंने आगे की पढ़ाई शुरू की, इसी बीच 8 मार्च 1940 को उनके साथ एक ऐसी घटना हुई जिससे उनकी पूरी जिंदगी ही बदल गई। इस दिन सत्य साई बाबा को एक बिच्छू ने काट लिया, इस वजह से वो कुछ घंटे तक बेहोश रहे और उसके बाद से ही उनके व्यक्तित्व में बदलाव आता गया और वो बदलाव काफी अजीबोगरीब था क्योंकि वो कभी अचानक से हंसने लगते तो कभी एकाएक रोने लगते थे या फिर किसी सोच में खो जाते थे।

इसके अलावा उन्होंने संस्कृत में बातें करना शुरु कर दिया था, इसमें सबसे बड़ी हैरानी की बात ये थी कि उन्होंने कभी संस्कृत भाषा का अध्ययन नहीं किया था। इसके बाद 23 मई 1940 को लोगों को उनके दिव्य रूप का एहसास होने लगा, उस समय सत्यनारायण राजू की उम्र महज 14 वर्ष थी और तभी उन्होंने अपने आप को शिरडी साई बाबा का अवतार घोषित कर दिया था और हैरत की बात ये थी कि उन्होंने उस समय अपनी मुट्ठी में चमेली के फूल लेकर उन्हें हवा में उछाल दिया और नीचे गिरने पर वो तेलुगु में साई बाबा लिख कर बन गए। एक और सबसे रोचक बात ये थी कि जब सत्य बाबा ने अपने आप को शिरडी का अवतार घोषित किया था तो उससे आठ साल पहले ही शिरडी वाले साई बाबा का देहावसान हो चुका था।

20 अक्टूबर 1940 को उन्होंने अपना घर ये कह कर छोड़ दिया कि उन्हें उनके भक्त बुला रहे हैं, 1944 में उनके किसी एक भक्त ने उनके गांव के पास एक मंदिर बनाया जिसमें सत्य बाबा से मिलने के लिए आने वाले भक्तों का तांता लगा रहता था, इस मंदिर को पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।

सत्य साई बाबा के चमत्कार

Biography of Sathya Sai Baba

 

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सत्य साई बाबा के चमत्कार पूरी दुनिया में मशहूर हैं, इनके चमत्कारों से इनके भक्तगण भली भांति परिचित हैं भले ही भक्तों के घरों में देवी-देवताओं की मूर्तियां या चित्रों से विभूति निकलना, कुमकुम, गुलाल, रोली, शहद निकलना। इसके अलावा मांगलिक कार्यों जैसेकि विवाह, गृह-प्रवेश, नामकरण इत्यादि में इनकी उपस्थिति महसूस करना, हाथों की छाप मिलना, अदृश्य रूप में प्रसाद लेना या पीले रंग के लिफाफे पर हिंदू धर्म के प्रतीक स्वास्तिक चिन्ह का मिलना ऐसे बहुत से चमत्कार हैं जो उनके भक्तों के जबान से आपको सुनने को मिल सकती हैं।

इन के अलावा बाबा भक्तों के समक्ष भी बहुत से चमत्कार किया करते थे जैसे हाथों से सोने की अंगूठी या चेन इत्यादि प्रकट कर देना, यहां तक कि उनकी मृत्यु से पहले चांद में सत्य साई बाबा की परछाई दिखने की भी चर्चा जोरों पर थी।

सत्य साई बाबा की आध्यात्मिक बातें

सत्य साई बाबा का ये मानना था कि किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने के साथ राष्ट्र हित के बारें में भी सोचना चाहिए। उनका मानना था कि किसी को भी सफल बनने के लिए उसे बचपन से ही अच्छे संस्कार मिलने चाहिए और उन्हें अपने अंदर 5 मानवीय मूल्यों जिसमें सत्य, धर्म, शांति, प्रेम और अहिंसा आते हैं को अपने चरित्र में समावेश कर लेना चाहिए।

उनका मानना था कि हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए, देश का सम्मान करें और हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि रखना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा था कि भगवान एक हैं बस उनके नाम अलग-अलग हैं, हमें हमेशा गरीबों, जरुरतमंदों और बीमार लोगों की मदद करनी चाहिए।

सत्य साई का निधन

लंबी बीमारी से संघर्ष करते हुए 24 अप्रैल 2011 को सत्य साई ने अपने मानव शरीर का त्याग कर दिया और दुनिया को छोड़ कर चले गए। अपने जाने के बाद वो अपने पीछे 40 हजार करोड़ की संपति छोड़ गए थे।

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