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तो इसलिए नहीं करना चाहिए भगवान कृष्ण की पीठ के दर्शन, जानें क्या है इसकी वजह

Youthtrend Religion Desk : जब भी हम भगवान के दर्शन करने मंदिर जाते हैं तो सबसे पहले मंदिर की चौखट को छू कर हम अपने माथे से लगाते हैं, उसके बाद मंदिर के अंदर जाकर अपने इष्टदेव के दर्शन करते हैं और भगवान की परिक्रमा लगाते हैं पर ऐसा करते ही हम भगवान की पीठ के भी दर्शन कर लेते हैं लेकिन धार्मिक दृष्टि से ऐसा करना अशुभ माना जाता हैं, आज के इस लेख में हम इसके पीछे की वजह के बारें में जानेंगे।

श्री कृष्ण की पीठ देखना क्यों है गलत

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शास्त्रों के अनुसार जब भी भगवान के दर्शन करने जाए तो सिर्फ उनके मुख की तरफ देखे, कभी भी गलती से भी पीठ के दर्शन ना करें, ऐसा करना आपके लिए बहुत अशुभ हो सकता हैं, ऐसा करने से आपके पाप बढ़ सकते हैं जबकि पुण्य कम होते हैं। हमारें अच्छे कर्म कम होने लगते हैं जबकि पाप कर्म बढ़ने लगते हैं इसलिए जब भी श्रीकृष्ण के दर्शन करें तो उनके मुंख की तरफ से करें।

इसके पीछे प्रचलित हैं एक कथा

कहा जाता हैं कि जब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण और जरासंध का युध्द चला रहा था तब जरासंध का एक मित्र कालयवन जो एक असुर था, उसने भी भगवान श्री कृष्ण के साथ युद्ध शुरू कर दिया, उसके बाद कालयवन ने प्रभु श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए लगातार ललकारना शुरू कर दिया, तभी भगवान कृष्ण वहां से भाग गए, युद्ध भूमि से भागने के कारण ही उन्हें रणछोड़ के नाम से भी जाना जाता हैं।

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जब कलवयन ने कृष्ण जी को भागता हुआ देखा तो उसने भी कृष्ण जी का पीछा करना शुरू कर दिया, भगवान के इस तरह से भागने के पीछे भी एक वजह थी और वी ये थी पिछले जन्म से कालवयन के पाप बहुत ज्यादा थे और भगवान श्रीकृष्ण किसी भी दुष्ट को तब तक सजा नहीं दे सकते जबतक उसके पाप पुण्यों से ज्यादा ना हो जाए, कालवयन ने भागते हुए भगवान की पीठ देखी जिससे उसके पाप बढ़ते गए। इसलिए कहा जाता हैं कि भगवान की पीठ में अधर्म का वास होता हैं।

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जब कालवयन के पुण्य खत्म हो गए तो प्रभु श्रीकृष्ण ने एक गुफा में प्रवेश किया जिसमें मुचुकन्द नामक राजा निद्रासन में तल्लीन थे, उस राजा को इंद्रदेव से ये वरदान प्राप्त था कि जो राजा को निद्रा से उठाएगा वो राजा की नजर पड़ते ही भस्म हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण ने गुफा में जाते ही अपनी एक पोशाक को राजा पर उड़ा दी, तब कालवयन ने राजा को श्रीकृष्ण समझकर उठाया पर राजा को मिले वरदान अनुसार कालवयन वही जलकर भस्म हो गया।

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