दो युवाओं की सोच और हौसले ने केरल के इन गाँवों की बदल दी सूरत, आज बन गया है शानदार टूरिज्म स्पॉट!
Youthtrend Inspirational Story Desk : आपने देखा होगा कि अक्सर ही गाँवों से कितने लोग पढ़ लिखकर, बेहतर नौकरी के लिए शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। शायद यही कारण है कि गाँवों से नौजवानों की संख्या कम होती जा रही है। हमारी आँखों पर शहरों की चकाचौंध का ऐसा चश्मा चढ़ा हुआ है कि अपने पीछे छूटे हुए गाँव का अंधेरा हमें दिखाई ही नहीं देता। इसी अंधेरे को दूर करने के लिए एक कदम उठाया है ग्राम्या ने।
भावेश बताते हैं, “ग्राम्या को स्थापित करते समय मेरी एक प्रमुख सीख यही रही है कि सहानुभूति, भाषा और सांस्कृतिक बाधाओं को पार कर जाती है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि रूरल टूरिज्म को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिलना चाहिए क्योंकि गाँव ही असली घर है। ग्राम्य की स्थापना के दौरान हमें काफी मुश्किलें आईं, लेकिन हम अब तक भाग्यशाली रहे हैं कि परिवार, दोस्तों, ग्रासरूट्स एवं आईसीड (ISEED) से मजबूत समर्थन मिला।”
मूल रूप से रायपुर, छत्तीसगढ़ के रहने वाले भावेश पिछले 3 सालों से ग्रामीण समुदाय के साथ जुड़ कर काम कर रहे हैं। भावेश ने दृष्टि (एनजीओ) के साथ जुड़कर खेती के नए और बेहतरीन तरीकों पर भी काम किया है। इन्होंने अपना एक लंबा समय जमीनी हकीकतों पर काम करते हुए बिताया है। सुदूर गाँवों में घूमते हुए, लोगों से बात करते हुए, उन्हें समझते हुए एक जिम्मेदार टूरिज्म में योगदान दिया है।
वहीं केरल के पलार गाँव से आने वाली अन्नू भी भी इंडिया फैलो प्रोग्राम से जुडी हुई हैं और यही उनकी मुलाक़ात भावेश से हुई। अन्नू पिछले 3 सालों से ग्रामीण विकास के लिए तन्मयता से काम कर रही हैं। इन्होंने महाराष्ट्र में अगस्त्य अंतरराष्ट्रीय संस्थान के साथ जुड़कर शहरी और ग्रामीण शिक्षा स्तर को बेहतर करने के लिए काम किया है। अन्नू क्लब महिंद्रा के साथ जुड़ के महाराष्ट्र के एक गाँव में रूरल टूरिज्म भी करवा चुकी हैं।
एक बातचीत के दौरान अन्नू बताती हैं कि ग्राम्या की शुरुआत तब हुई जब भावेश और उनके मन में ग्रामीण पर्यटन का ख्याल आया। इसी ख्याल को रूप देने के लिए मार्च 2018 में केरल के कई गाँवों में पायलट प्रोजेक्ट कराये गए, ताकि देखा जा सके कि गाँवों की क्षमता क्या है। 2018 में ग्राम्या का काम जोरों शोरों से शुरू हो गया। काम शुरू करने के लिए केरल के इडुक्की जिले को चुना गया, जहां दो गाँव थे – मक्कुवल्ली और पालर।
भावेश इसके बारे में आगे बताते हैं, “क्यूंकि अन्नू केरल से हैं और यह राज्य एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है, इसलिए हमने ग्राम्या को स्टेबलिश करने के लिए केरल चुना। मक्कुवल्ली को चुनने के पीछे वजह थी कि ग्रामीण समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण में काम करने के इच्छुक थे, ये जगह शहर की हलचल से अलग शांत और सुरम्य है. साथ ही यहां के लोग बेहतरीन मेजबान हैं।”
इन गाँवों में ग्राम्य ने तीन स्तर में काम किया – १. गाँववालों की क्षमता को पहचानना, २. गाँवों और उसमें रहने वाले लोगों को समझना। ३. ग्राम्या से जुड़े गाँववालों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था करवाना जैसे: गाइड स्किल, कुकिंग स्किल, हाउसकीपिंग, रूरल टूरिज्म के लिए अकाउंट की देख रेख।
इसके बाद यहाँ दो प्रोजेक्ट्स को अंजाम देना था –
पहला – खेती और किसानों के साथ गाँव का विकास और
दूसरा – खेती के बगैर गाँववालों को रोज़गार।
दोनों ही प्रोजेक्ट्स में गाँव की क्षमता को देख कर कार्य करना था। साथ ही, यह भी ध्यान रखना था कि गाँववाले स्वेच्छा से ग्राम्या के साथ जुड़ें।
पहले प्रोजेक्ट के तहत 2018 में उन्होंने पालर गाँव में स्थित किसान क्लब को कोच्चि शहर में जैविक सब्जियों की दुकानों से जोड़ा, जिसमें फल व सब्जियां सीधे किसान के खेतों से आते हैं। किसानों को अब अपनी सब्जियों की सही रकम हासिल होने लगी।
दूसरे प्रोजेक्ट के तहत मक्कुवल्ली गाँव में खेती के बिना विकास की योजना बनाई गई, जिसमें ग्रामीण पर्यटन को शामिल किया गया। इसी के तहत ग्राम्या अभी तीन तरह की ट्रिप क्यूरेट करवा रही है – डे ट्रिप्स, ओवरनाइट स्टेस, जर्नी ऑफ टी।
चाहे आप केरल के गाँवों में जीवन के एक क्विक मजेदार अनुभव की तलाश में हों, या शहर के जीवन की हलचल से दूर अपने प्रियजनों के साथ शांतिपूर्ण सप्ताहांत मनाने की तलाश में हों, डे ट्रिप आपके लिए मुफीद है।
यह ट्रिप केरल के इडुक्की जिले के मक्कुवल्ली में ऑर्गनाइज करवाई जाती है। इडुक्की के आरक्षित वन क्षेत्र के बीच स्थित, मक्कुवल्ली प्राकृतिक सुंदरता का कटोरा है। 1941 में, इस क्षेत्र को राज्य के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक के रूप में पहचाना गया था। इडुक्की के निचले इलाकों के किसानों को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान राज्य में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न और कंद की खेती करने के लिए इस क्षेत्र में प्रवास करने के लिए कहा गया था।
केरल के इडुक्की जिले के मक्कुवल्ली में ही होने वाली नाइट स्टे ट्रिप में स्वच्छ पश्चिमी या भारतीय शैली के शौचालयों के साथ सरल, आरामदायक कमरों में एक परिवार के साथ रहने की व्यवस्था होती है। इस ट्रिप में आपको गाँवों में जीवन के गहन अनुभव प्राप्त करने के लिए ग्रामीण गतिविधियों में संलग्न होने का मौका मिलता है। साथ ही भोजन पर अपने मेजबान परिवार के साथ बातचीत करते हुए आप पारंपरिक व्यंजन पकाना भी सीख सकते हैं। इसके अलावा पर्यटक स्थानीय लोगों की तरह ड्रेस-अप कर सकते हैं।
केरल के कई पारंपरिक व्यंजनों का अभी भी मक्कुवल्ली के रसोई में उपयोग किया जा रहा है। मुन्नार, थेक्कडी या कोच्चि जाने वाला कोई भी व्यक्ति मक्कुवल्ली की यात्रा की योजना बना सकता है।
जर्नी ऑफ टी ट्रिप
जर्नी ऑफ टी ट्रिप में इडुक्की जिले के ही पालर गाँव में चाय बागानों के बीच पूरे दिन की यात्रा करवाई जाती है। पालर गाँव में प्राकृतिक और पारंपरिक रूप से चाय उगाई जाती है। यहां आपको प्राकृतिक खेती के तरीकों को समझने और इलायची के बागानों से सैर करने का अवसर भी मिलता है। केरल और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित पहाड़ी गाँव पालर मुख्य रूप से इलायची और चाय के बागानों से मिलकर बना एक गाँव है। पालार गाँव की संस्कृति और परम्पराएं पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हुई हैं। यहां पर घूमना एक अलग ही अनुभव होता है।
ग्राम्या के इस रूरल टूरिज्म इनीशिएटिव से गाँववालों को बढ़िया रोजगार मिल रहा है। इन गाँवों से पलायन भी रुक रहा है। यही होता है जब नौजवान अपनी क्षमताओं का सही प्रयोग करें। जब भावेश और अन्नू जैसे भारत के सभी नौजवान समझेंगे कि भारत का विकास तभी होगा जब भारत के गाँव का विकास होगा, तभी हम मिलकर खुशहाल भारत की नींव रख पाएंगे।