Holika Dahan 2020: दूर कर लें असमंजस, शुभ कामों पर नहीं लगेगा होलाष्टक का ‘ग्रहण’
होली का पावन पर्व 10 मार्च 2020 को हैं और होलिका दहन 9 मार्च 2020 को हैं, इसलिए होलाष्टक की अवधि 3 मार्च से शुरू हो रही है। कहा जाता है कि होलाष्टक की अवधि के दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किये जाते, इस वजह से कई लोग असमंजस की स्थिति में रहते हैं ऐसे लोगों के लिए एक अच्छी खबर आज हम बताने जा रहे हैं।
उत्तराखंड विद्वत सभा ने होलाष्टक से काफी लोगों की जुड़ी समस्याओं का हल बताया है, इस सभा के प्रवक्ता आचार्य ने लोगों को कहा कि होलाष्टक से डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता लेकिन यह बात भी समझनी होगी कि होलाष्टक का प्रभाव कुछ राज्यों में ही होता है नाकि पूरे भारतवर्ष में।
होलाष्टक में क्या नहीं किया जाता
होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसेकि विवाह, नामकरण, ग्रह-प्रवेश, मुंडन, सगाई, कोई जमीनी खरीद-फरोख्त इत्यादि। इसके अलावा होलाष्टक में आभूषण, सोना-चांदी, हीरा-जवाहरात की भी खरीदी नही की जाती है।
क्या होता है होलिका दहन
कहा जाता है कि जिस तरह घर मे किसी की मृत्यु होने पर उनका दाह-कर्म किया जाता है उसी प्रकार होलिका दहन की तैयारी की जाती है और 8 दिन तक लगातार लकड़ियां इकट्ठी की जाती है। इसलिए होलाष्टक से लेकर होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नही किया जाता।
कुछ राज्यों में ही होता है इसका असर
ज्योतिष आचार्य और शास्त्रों के मुताबिक होलाष्टक का प्रभाव कुछ राज्यों में होता है और वो राज्य है हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में ही होलाष्टक का ज्यादा प्रभाव होता है। इसलिए इन राज्यों में होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है तथा बाकी के राज्यों में होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य किये जा सकते है इन राज्यों में उत्तराखंड राज्य भी शामिल है। यहा हम आपको यह बताना चाहेंगे कि आगामी 8 मार्च 2020 को कई विवाह समारोह का आयोजन है तो इससे हम समझ सकते है कि होलाष्टक के समय भी कई जगह शुभ कार्य किये जाते हैं।
होलिका दहन की प्रचलित कथा
होलिका दहन की जब भी बात होती है तो हमें होलिका द्वारा प्रहलाद को अग्नि में जलाने की कोशिश याद आती है और इससे हमें यह संदेश भी प्राप्त होता है कि बुराई कितनी भी मजबूत क्यों ना हो लेकिन अच्छाई के आगे उसे हारना ही पड़ता है।
प्रहलाद भगवान विष्णु जी का परम भक्त था परंतु उसके पिता हिरण्यकश्यप को यह पसंद नही था इसलिए काफी यत्नों के बाद भी जब वो प्रहलाद को मरवा नहीं पाए तो उन्होंने अपनी बहन होलिका को, जिसे अग्नि में भी ना जलने का वरदान था उसे प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने को कहा। जिसके बाद क्या हुआ हम सब जानते है।